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महावीर और मूक जगत
-आचार्य रजनीश
महावीर की चेष्टा रही है कि पौधे, पशु-पक्षी, देवी-देवता, सब तक, जीवन के जितने तल हैं उन सब तक, उन्हें जो मिला है उसकी खबरें पहुंचे। महावीर के बाद ऐसी कोशिश करने वाला दूसरा नहीं हुआ। यूरोप में फ्रांसिस ने थोडी कोशिश की है, पशु-पक्षियों से बातचीत करने की। अभी-अभी श्रीअरविन्द ने कोशिश की है पदार्थ तत्व पर चेतना के स्पन्दन पहुँचाने की। लेकिन महावीर जैसा प्रयास न पहले कभी हुआ और न बाद में हुआ । वृक्षों, पत्थरों से बातचीत करने के लिये उसी पल जड़ अवस्था, उसी पल मूक अवस्था में उतरना पड़ेगा। रामकृष्ण परमहंस ऐसी जड़ अवस्था में उतरते रहे हैं, मगर महावीर ने इस दिशा में मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे अधिक गहरे प्रयोग किये, और महावीर की अहिंसा भी इसी मूक, जड़ पदार्थ के तादात्म्य से निकली है। मेरी समझ में यह है कि महावीर ने जितने पशुओं और जितने पौधों की आत्माओं को विकसित किया है, उतना इस जगत में किसी दूसरे ने नहीं किया। यानी आज पृथ्वी पर जो मनुष्य हैं, उनमें से बहुत मनुष्य सिर्फ इसलिए मनुष्य हैं कि उनको पशु योनि या पौधों की योनि में या पत्थर होने में महावीर ने संदेश भेजे थे, और उन्हें बुलवा भेजा था।
इतना ही नहीं परमाणुओं तक में भी महावीर ने खबर पहुंचाने की कोशिश की है। इन प्रयोगों में वे इतने व्यस्त रहे कि चार-चार, पाँच-पांच महीनों तक शरीर मृतावस्था जैसी जड़ हालत में रहा और वे निराहार रहे । मगर जिस परमाणु जगत को उन्होंने सत्य का संदेश भेजा, वह भी प्रत्युत्तर में उन्हें कुछ न कुछ देते ही होंगे। जो मनुष्य सारे परमाणु जगत से सम्बन्ध बनाये हुए है, उसे इसी परमाणु जगत से अगर कुछ शारीरिक शक्ति मिल रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यही उनके भोजन की चिन्ता न करने का सूत्र था।
आज भी यूरोप में एक ऐसी महिला जिन्दा है, जिसने ३० साल से भोजन नहीं किया और पूरी तरह स्वस्थ एवं सुन्दर है । बंगाल में अभी एक महिला की मृत्यु हुई है, उसने ४५ वर्ष तक भोजन नहीं किया, फिर भी स्वस्थ और सुखी थी। वैज्ञानिक कारण ढूंढने में लगे हैं । मुझे ऐसा लगता है कि यह सूक्ष्म परमाणु जगत ही उन्हें भोजन देता है।
प्रकृति भी महावीर के प्रतिकूल होने की कोशिश नहीं करती, बल्कि अनुकूल होने की कोशिश करती है, क्योंकि जिसने प्रकृति से इतना अधिक प्रेम किया हो, वह प्रकृति भी कैसे प्रतिकूल होने की कोशिश करेगी।
महावीर ने देवताओं तक भी संदेश भेजे हैं। उनकी १२ वर्ष की पूरी साधना अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा की साधना है शब्दों के बिना भी संदेश भेजे जा सकते हैं जैसे तरंगों के द्वारा, जिसे हम 'वायरलेस' कहते हैं, सन्देश पहुंचाना । मनुष्य के साथ घटना 'शब्द' के साथ घटी है । देवताओं से सम्पर्क सीधे अर्थ द्वारा होता है। मनुष्य के पास शब्द रूपी तरंगे पहुंचती है, 'अर्थ' वह स्वयं खोजता है। तब बड़ी मुश्किल हो जाती है । व्याख्याओं और टीकाओं की लाइन खड़ी हो जाती है।
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