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हर दुखियारे का दुःख बाँटा, हर आँसू को मुक्ति दिलाई। जीओ और जीने दो सबको, ये सत्यपथ की राह बताई ॥ हर भाषा के कंठ कंठ में तेरा स्वर निकले।
हर मन में ज्योति जले हे वीर तुम्हारे चरणों में भावों के फूल खिले ।
श्रम के साधक, कर्म विजेता, पुरुषारथ कर्तव्य सिखाया। मिलकर चलो बाँट कर खाओ,
परिग्रह दुख का मर्म बताया ॥ कितने ही दुःख सुख आयें, समता का दीप जले।
जन जन के हृदय मिले। हे वीर तुम्हारे चरणों में भावों के फूल खिले ॥
-तारा चन्द 'प्रेमी'
आये शरण तुम्हारे सत्य अहिंसा आत्मशक्ति के सतत सबल रखवारे ।
सुखदर्शी गंगा से पावन जन जन तुम्हें पुकारे ॥ अहर्निशि झंझा से झंकृत भारत के जन सारे।
__कलुष कल्पना का पथ झूठा पाते सांझ सकारे ॥ सौम्य शान्ति के दूत दुःख के नाशक विपद् सहारे।
पथ परिचायक युग निर्माता वसुन्धरा के प्यारे ॥ निज स्वभाव साधन से तुमने परमातम पद पाया।
__सृष्टि को सदृष्टि देकर सत्यमार्ग दिखलाया ॥ तुम जैसा बन जाता जो भी पथ पर चला तुम्हारे ।
विश्व विभूषण सिद्धारथ सुत आये तुम्हारे द्वारे ॥ कठिन विपद में धर्म पड़ा है कलयुग करे ठिठोली।
लक्ष्य भ्रष्ट शासन जगती पर राख बन गई रोली॥ ज्ञान लोक विश्व के ज्ञाता, सब दुनियाँ से न्यारे। सद् दृष्टि पाने को भगवान्, आये शरण तुम्हारे॥
-चन्द्रकान्ता
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