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ज्ञान.सूर्य की किरण तिमिर हर अखिल विश्व ने पाई,
फैला नव-आलोक जगत में अनुपम ज्योति जगाई । सत्य अहिंसा क्षमा शान्ति के बजने लगे नगारे, धन्य हुआ कुण्डलपुर परसत पावन चरण तिहारे ॥
-घासीराम चन्द्र' वीर तुमने वीर तुमने अवतरित होकर धरा की थी अलंकृत। वातमंडल को किया था, भव्य भावों से तरंगित ॥ दश दिशा को कर दिया था, धर्म ध्वनि से परम झंकृत । और मानव मात्र को तुमने बनाया था सुसंस्कृत ॥
-प्रकाश चन्द्र ओ वर्द्धमान मानवता के ओ अलंकार ! बसुधा के चिर अक्षय विराम ! ओ वर्द्धमान ! पतितोद्धारक, ज्योतिर्मय, विभु ! शतशत प्रणाम । प्रकटे तू भूपर लेकर के दानावता का संहार सुखद, फिर से इस जगती में लाए मानवता का श्रृंगार सुखद, अकरुण, निर्दय जग में लाए करुणा का पारावार अगम, आवर्तित करने इस जग को लाए नवीन संसार सुगम, तुम महामनस्वी युग नेता, युग निर्माता अतिशय ललाम । ओ वर्द्धमान ! पतितोद्धारक, ज्योतिर्मय, विभु ! शतशत प्रणाम ॥ लो, आज परिस्थिति ठीक वही, संघर्ष, दैन्य, शोषण, छलबल, सभ्यता भव्यता मिटी सकल परिव्याप्त चहूँ दिशि है हलचल, अतएव चीखती 'वैशाली' मेरे लिच्छिवि भगवान कहां? कण-कण बसुधा का बोल रहा करुणा के अहो निधान कहां ? कितनी ही मौन पुकारें हैं अब बुला रही प्रति दिवस-याम"ओ मानवता के अलंकार, वसुधा के चिर अक्षय विराम !" 'ओ वर्द्धमान ! आओ आओ, ज्योतिर्मय विभु ! शतशत प्रणाम ॥'
गर प्रचंडिया त्रिशला नन्दन तुमने जब अवतार लिया, जब पशु हत्या ही धर्म हुआ था। ___ अपनी सर्व श्रेष्ठता मद में, जब मानव बेशर्म हुआ था।
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