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जबहीं हो सकती है दुनियां की तरक्की 'मुज्तर' ।
देश हर एक बढ़े प्राप्त होता है अहिंसा ही से
आगे लिये सत्य का भेष ! सच्चा आनन्द,
सारे संसार को है वीर का यही उपदेश ! !
- रामकृष्ण 'मुज्तर' काकोरवी
हे युग-पुरुष
हे युग पुरुष ! वंद्य युग-युग के, जन जन के सादर प्रणाम लो ।
तुमने दिया उजाला ऐसा, मानव का पाथेय बन गया । आदर्शों को जीवित रखकर, जीवन जीना ध्येय बन गया ॥
महावीर ! तुमने जीवन को, ऐसा पावन मोड़ दे दिया । जिसने मन को अमर शान्ति का, तन को तप का कोड़ दे दिया ||
सत्य अहिंसा प्रेम दया के, ऐसे स्वर्गिक भाव जगाये | जिनको पुरुष अगर अपना ले, तो खुद पुरुषोत्तम बन जाये ॥
हर युग के शाश्वत सत्यों को, सार तुम्हारा अमर-गान है । जितना समय बीतता जाता, बढ़ता उसका और मान है ॥
जितना तम गहराता जाता, पुजता उतना ही प्रकाश है । वर्तमान में, वरण तुम्हारा, करने की बढ़ रही प्यास है ॥
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