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गिरिभित्त्यवदानवतः श्रीमत इव दन्तिनः श्रवदानवतः । तव शमवादानवतो गत मूजितमपगत प्रमादानवतः ॥
अभीत्यावर्द्ध मानेनः श्रेयोगुरु संजयन् ।
अभीत्या वर्द्ध मानेनः श्रेयोगुरु संजयन् । नानानन्तनुतान्त तान्तित निनुन्नुन्नान्त नुन्नांनृत नूतीनेग नितान्ततानितनुते
नेतोन्नतानां ततः। नुन्नातीतितनून्नति नितनुतान्नीति निनूतातनुन्तान्तानीतिततान्नुतानन
नतान्नो नूतननोत्तु नो॥ प्रज्ञा सा स्मरतीति या तव शिरस्तद्यन्नतं ते पदे, जन्मादः सफलं परं भवभिदी मत्राश्रिते ते पदे । मांगल्यं च स यो रतस्तव मते गीः सैव या त्वा स्तुते, ते ज्ञा ये प्रणता जनाः क्रमयुगे देवाधिदेवस्य ते । जन्मारण्यशिखी स्तवः स्मृतिरपि क्लेशाम्बुधेनौंः पदे, भक्तानं परमौनिधी प्रतिकृतिः सर्वार्थसिद्धिः परा। वन्दीभूतवतोपि नोन्नतिहतिर्नन्तुश्च येषां मुदा, दातारो जयिनो भवन्तु वरदा देवेश्वरास्ते सदा ॥
-स्वामि समन्तभद्रः
जिस प्रकार गण्डस्थल से मद बहाते और मार्ग के पर्वतों के छोरों को विदारण करते हुए उत्तम गजराज का स्वाधीन गमन होता है वैसे ही पृथ्वी पर आपका उदार, हितकारी, सबको अभयदाता और एकांत मतों का खंडन करने वाला सुखद विहार हुआ। हे देव विनत जिनेन्द्र ! जो बुद्धिमान आपकी स्तुति और पूजा करता है, वह संसार के दुखों से पीड़ित नहीं होता और सफल मनोरथ होकर मोक्ष सुख पाता है। हे देव ! अनेक भव्य जीवों ने आप के विविध गुणों की स्तुति की है, आप दुखों को नष्ट करने वाले हैं, अन्तरहित हैं, आपने एकान्तवाद रूप असत्य को नष्ट कर दिया है, गणधरादि देवों ने आपका उज्ज्वल यश सब ओर फैलाया है, आप उत्तम पुरुषों के नायक हैं, उनके द्वारा पूजित हैं, आपकी मुख छवि स्तुत्य है, हे पूज्यवर ! हम सांसारिक दुःखों से पीड़ित अनेक व्याधियों से घिरे हैं, हम आप के चरणों में विनत हैं। आप हमें जन्म-मरण का अन्त करने वाली महाविद्या प्रदान कीजिए, हमारे नये बंधने वाले पापों को नष्ट कीजिए और शीघ्र ही बन्धन मुक्त कीजिए। हे देवधिदेव ! बुद्धि वही है जो कि आपका स्मरण करे, ध्यान करे, मस्तक वही है जो आपके चरणों में झुका रहे, वही जन्म सफल है जिसमें भवभ्रमण को नष्ट करने वाले आपके चरणों का आश्रय . लिया गया हो, वही मंगलीक है जो आपके मत में अनुरक्त हो, वाणी वही है जो कि आपकी स्तुति
करे, और पंडितजन वही हैं जो आपके चरण-युगल में नत रहते हैं। जिनका स्तवन भव रूपी अटवी को नष्ट करने के लिए अग्नि के समान है, जिनका स्मरण दुःखरूप
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