________________
॥ ॐ ह्रीं श्रहं नमः ॥
पहला व्याख्यान
आत्मा का स्तव
जिणवयणे श्रणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेणं । श्रमला असंकि लिट्ठा, ते हुंति परित्त संसारी ॥
शास्त्रकार स्थविर भगवत श्री उत्तराध्ययन सूत्रके' जीवाजीव-विभक्तिनामक छत्तीसवे अध्ययन की इस गाथा में अल्प- ससारी आत्मा का स्वरूप बताते है, 'जो आत्माएँ जिन-वचन में अनुरक्त हैं - श्रद्धावान है, जिनवचन में कथित और प्ररूपित अनुष्ठानों को सोल्लास करती हैं, जो मल
१ जैन धर्म के प्रमाणभूत मूल ग्रन्थों को 'आगम' कहते हैं, इस समय ४५ श्रागम प्रकाश में है, उनमें ११ अग है, १२ उपाग हैं, १० पयन्ना हैं, ६ छेटसूत्र हैं, और २ सूत्र हैं, चार मूल सूत्रों में एक उत्तराध्ययन सूत्र हैं, उसमें साधु-जीवन को लक्ष्य में रख कर सुन्दर हृदय-स्पशी उपदेश दिया गया है तथा अन्य आनुषंगिक विपयों का भी वर्णन है । वह सूत्र छत्तीस अध्ययन में विभाजित है, उसमें अन्तिम अध्ययन जीव और अजीव के विषय में है, इसलिए उसका नाम 'जीवाजीव विभक्ति' है ।