Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३] वेदणिजं हेछिल्ला चत्तारि बंधंति, केवलनाणी भयणाए।
[२२-३] वेदनीयकर्म को निचले चारों (आभिनिबोधिकज्ञानी से लेकर मनःपर्यवज्ञानी तक) बांधते हैं; केवलज्ञानी भजना से (कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं) बांधता है।
२३. णाणावरणिजं किं मतिअण्णाणी बंधइ, सुय० विभंग० ?
गोयमा ! आउगवजाओ सत्त वि बंधति। आउगं भयणाए। __[२३ प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयकर्म को मति-अज्ञानी बांधता है, श्रुत-अज्ञानी बांधता है या विभंगज्ञानी बांधता है ?
__ [२३ उ.] गौतम ! आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों को ये (तीनों प्रकार के अज्ञानी) बांधते हैं। आयुष्यकर्म को ये तीनों (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं।
२४.[१] णाणावरणिजं किं मणजोगी बंधइ, वय०, काय०, अजोगी बंधइ ? गोयमा ! हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, अजोगी न बंधइ।
[२४-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या मनोयोगी बांधता है, वचनयोगी बांधता है, काययोगी बांधता है या अयोगी बांधता है ?
[२४-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) निचले तीन - (मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं; अयोगी नहीं बांधता।
[२] एवं वेदणिजवजाओ। [२४-२] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [३] वेदणिजं हेछिल्ला बंधति, अजोगी न बंधइ।
[२४-३] वेदनीय कर्म को निचले (मनयोगी, वचनयोगी और काययोगी) बांधते हैं; अयोगी नहीं बांधता।
२५. णाणावरणिजं किं सागारोवउत्ते बंधइ, अणागारोवउत्ते बंधइ ? गोयमा ! अट्ठसु वि भयणाए।
[२५ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय (आदि अष्टविध) कर्म को क्या साकारोपयोग वाला बांधता है या अनाकारोपयोग वाला बांधता है।
[२५ उ.] गौतम ! (साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त दोनों प्रकार के जीव) भजना से (आठों कर्मप्रकृतियों को कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं।
२६.[१] णाणावरणिजं किं आहारए बंधइ, अणाहारए बंधइ? गोयमा ! दो वि भयणाए।