Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३] आउगं हेछिल्ला दो भयणाए, उवरिल्लो न बंधइ।
[१७-३] आयुष्यकर्म को नीचे के दो (भवसिद्धिक-भव्य और अभवसिद्धिक-अभव्य) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं । ऊपर का (नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक) नहीं बांधता।
१८.[१] णाणावरणिजं किं चक्खुदंसणी बंधति, अचक्खुदंस०, ओहिदंस०, केवलदं० ? गोयमा ! हेछिल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ।
[१८-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या चक्षुदर्शनी बांधता है, अचक्षुदर्शनी बांधता है, अवधिदर्शनी बांधता है अथवा केवलदर्शनी बांधता है ? .
[१८-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) नीचे के तीन (चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं किन्तु-केवलदर्शनी नहीं बांधता।
[२] एवं वेदणिजवजाओ सत्त वि। [१८-२] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। [३] वेदणिजं हेछिल्ला तिण्णि बंधंति, केवलदंसणी भयणाए।
[१८-३] वेदनीयकर्म को निचले तीन (चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) बांधते हैं, किन्तु केवलदर्शनी भजना से (कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं) बांधते हैं।
१९. [१] णाणावरणिजं कम्मं किं पजत्तओ बंधइ, अपजत्तओ बंधइ, नोपजत्तएनोअपजत्तए बंधइ ?
गोयमा ! पजत्तए भयणाए, अपज्जत्तए बंधइ, नोपजत्तए-नोअपजत्तए न बंधइ। । [१९-१ प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयकर्म को पर्याप्तक जीव बांधता है, अपर्याप्तक जीव बांधता है अथवा नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीव बांधता है ? __ [१९-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) पर्याप्तक जीव भजना से बांधता है; (कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं) अपर्याप्तक जीव बांधता है और नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीव नहीं बांधता है।
[२] एवं आउगवजाओ। [१९-२] इस प्रकार आयुष्यकर्म के सिवाय शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [३] आउगं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ।
[१९-३] आयुष्यकर्म को निचले दो (पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीव) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं। अंत का (नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक) नहीं बांधता।
२०.[१] नाणावरणिजं कि भासए बंधइ, अभासए० ? गोयमा ! दो वि भयणाए।