________________
तृतीय अध्याय आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
पिछले अध्याय में जैन साहित्य की परम्परा का संक्षेप में उल्लेख किया गया है। आधुनिक काल में जैन साहित्य का कोई नूतन अभिगम, वैचारिक क्रान्ति या नूतन स्वरूप लक्षित न होकर परम्परा का विकास ही व्यक्त होता है। हां, युगानुकूल भाषा का प्रभाव इस काल की नवीन उपलब्धि अवश्य है। प्रारंभिक काल में हिन्दी जैन साहित्य के स्वरूप पर प्राकृत अपभ्रंश का प्रभाव लक्षित होता है, तदनन्तर भाषा क्रमशः खड़ी बोली की ओर अग्रसर होती गई। आधुनिक काल में जब हिन्दी साहित्य की भाषा के रूप में खड़ी बोली को पूर्णतः स्वीकृत किया जा चुका है, तब स्वाभाविक है कि हिन्दी जैन साहित्य की भाषा का माध्यम भी युगानुरूप खड़ी बोली ही है। आधुनिक काल में जैन साहित्य में विचार वस्तु, भावानुभूति एवं शैली के स्वरूप में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन गद्य का विकास एवं उसकी नूतन विविध विधाएं इस काल की महत्वपूर्ण भेंट है। मानव-हृदय की उमंग व अनुभूति गतिशील पद्य में स्वाभाविकता व सरलता से अभिव्यक्त होती है, जबकि मानव मस्तिष्क का तर्क शील बौद्धिक अंश गद्य की गंभीर गति में प्रदर्शित होता है। आधुनिक काल विचार-स्वातंत्र्य, भौतिक विकास तथा वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण नये-नये आयामों और दृष्टि बिन्दुओं का युग सहज ही कहा जायेगा। अतः गद्य की आवश्यकता इसी काल में होना स्वाभाविक है। हिन्दी जैन साहित्य आधुनिक काल में कैसा रूप ग्रहण करता है या गद्य के नये रूपों का स्वरूप कैसा है, यह सब देखने से पूर्व यदि 'आधुनिकता' एवं 'आधुनिक-काल' के सन्दर्भ में थोड़ा बहुत विचार किया जाये तो उपयुक्त रहेगा। आधुनिकता का संदर्भ :
'आधुनिक' शब्द काल सापेक्ष हैं। वैसे इतिहास के युगों का हर चरण आधुनिक ही होता है, क्योंकि जो युग चलता है, वह अपने अतीत से सदैव भिन्न या नूतन विचार व दृष्टि बिन्दु रखता ही है। लेकिन यहां हम आधुनिक या 'साम्प्रतिक' शब्द 'समकालीन' के बोधक रूप में स्वीकारते हैं। आधुनिकता को हम तीन दृष्टि बिन्दुओं से ग्रहण कर सकते हैं-(1) काल के दृष्टि बिन्दु 1. डा. भगीरथ मिश्र-आधुनिक हिन्दी काव्य, पृ. 2.