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आधुनिक हिन्दी-जैन-काव्य का कला-सौष्ठव
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को इस वृत्त में सुकरता से प्रस्तुत करने में समर्थ है। मूर्तिकार के हाथों में जैसे मुदित मृदु मृत्तिका होती है, वैसे ही अनूप जी के प्रतिभाकरों में वंशस्थ रहा है।'
___ वंशस्थ के अतिरिक्त 'वर्धमान में द्रुत विलंबित, शार्दूलविक्रीडित आदि का भी प्रयोग कवि ने सफलता से किया है। द्रुत विलंबित :-'वर्धमान' में वंशस्थ के बाद इस छन्द का प्रयोग हुआ है लेकिन वंशस्थ के सामने इसका प्रमाण अत्यन्त कम है। दो-चार जगह मालिनी, एक दो जगह इन्द्रवज्रा का शार्दूलविक्रीडित का उपयोग हुआ है। इस 12 वर्ण के छन्द में नगण, भगण, भगण और रगण का योग रहता है। रूप वर्णन एवं प्रकृति वर्णन में भी छन्द का प्रयोग होता है। (द्रुत विलंबित माहनमोमरी। छन्दोमंजरी, 2, 10) इस छन्द का एक उदाहरण देखिए :
सुलभ जीवन का न रहस्य है, अति सुदुर्लभ मृत्यु विभेद भी, कुछ पता न चलता तब अंत में, उठ चले गृह को वह शीघ्र ही। मनुज है प्रकृतिस्थ अवश्य पे, इतर है जग आत्मस्वरूप से,
जगत है जड़ चेतन जीव है, परम पुद्गल तत्त्व-अतत्त्व है। शार्दूलविक्रीडित :
_ 'वर्धमान' महाकाव्य में अंतिम तीन छन्द यह हैं। इसके कुल 19 वर्ण होते हैं तथा 12 वर्णों के बाद यति आती है। सगसतत् और अन्त में एक गुरु होता है। (सूर्योश्चैर्यादियः सगो सततमाः शार्दूलविक्रीडितम।' छन्दोमंजरी, 2-6) यह छन्द शृंगार, वीर व करुण के लिए विशेष उपयुक्त है। 'वर्धमान' में प्रयुक्त इसका एक उदाहरण :
ऐसा मार्ग प्रशस्त है, न जिसमें है भ्रान्ति शंका कहीं, छायी अम्बरमध्य जैन मत की आनंद कादम्बिनी। देखी सौख्य वसन्त के पवन-सी सामायिकी की साधना, काम क्रोध मदादि कंटक बिना सन्मार्ग है धर्म का।
वंशस्थ के विपुल तथा सफल प्रयोग करने के लिए हिन्दी जैन महाकाव्य के रचयिता धन्यवाद के पात्र है। संस्कृत वर्णवाले छन्दों का 17 सर्गों की महान 1. डा. पूतूलाल शुक्ल-अनूप शर्मा-कृतियाँ और कला के अन्तर्गत-'महाकवि अनूप
की छन्द योजना' निबंध, पृ. 308. 2. वर्धमान, पृ. 341. 3. वही, पृ. 347.
'अनूप शर्मा : कृतियाँ और कला' के अन्तर्गत महाकवि अनूप की छन्द योजना
'निबंध', पृ॰ 308. 4. वर्धमान, पृ. 585.