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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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कथा-साहित्य :
पीछे हम उल्लेख कर आये हैं कि हिन्दी साहित्य में उपन्यास व कहानी दोनों कथा-साहित्य के अंतर्गत समाविष्ट किये जाते हैं, जबकि जैन साहित्य में ऐसा नहीं है। यहाँ उपन्यास और कथा-साहित्य को पृथक्-पृथक् स्वीकार किया जाता है। आधुनिक युग में हम पश्चिमी साहित्य की टेकनिक से विशेष प्रभावित हैं, विशेषकर वर्णन, चरित्र-चित्रण, शिल्प विधान व गठन में। कभीकभी यह भ्रमवश माना जाता है कि कहानी का बड़ा रूप उपन्यास या उपन्यास का लघु रूप कहानी है, लेकिन यह गलतफहमी है। कहानी अपने आप में एक नूतन स्वतंत्र विधा है, जिसने अत्यन्त अल्प समय में श्लाघनीय प्रगति साध ली है। 'गद्य-कथा-साहित्य के एक अन्यतम भेद के रूप में कहानी सबसे अधिक किसी अंश में उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्यिक रूप है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में यह रूप भी बंगला के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य से आया है। + + + + कथा साहित्य के उपर्युक्त बड़े रूपों से कहानी की भिन्नता इतनी ही नहीं है कि उसका कथानक बहुत छोटा है और घटना-प्रसंग और दृश्य तथा पात्र और उनका चरित्र-चित्रण अत्यन्त न्यून, सूक्ष्म और संक्षिप्त होता है; वरन् कहानी प्रस्तुत करने में लेखक के दृष्टिकोण से तथा कहानी का वातावरण अर्थात् समस्त कहानी में परिव्याप्त सामान्य मनोदशा से उसके शिल्प विधान में ऐसी ऐक्यता और प्रभावान्विति आ जाती है, जो कहानी की निजी निधि है और उसके रूपात्मक व्यक्तित्व की पृथकता प्रकट करती है।'
यद्यपि कहानी के उपर्युक्त तत्त्व परस्पर अभिन्न रूप में संपृक्त होकर प्रत्येक कहानी में न्यूनाधिक रूप से वर्तमान रहते हैं। किसी कहानी में चरित्र, किसी में कथावस्तु, किसी में केवल वातावरण या अन्य तत्त्व को प्रधानता देते हुए शेष को अपेक्षाकृत कम महत्व दिया जाता है। कहानी के किसी एक तत्त्व पर बल देने के कारण उसमें इतनी अधिक रूपात्मक विविधता पाई जाती है कि कभी-कभी यह परखना कठिन हो जाता है कि कहानी, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र या चुटकले के समीप रहता है। कहानी में व्यापक मानवीय सत्यों का अन्वेषण या उद्घाटन सूक्ष्मता से किया जाता है, स्थूलता के लिए यहाँ अवकाश नहीं होता। समय की व्यवस्तता के कारण एक ही बैठक में बैठकर पाठक इसे समाप्त कर मनोरंजन और संतोष प्राप्त कर सके यह कहानी की मूलभूत शर्त या आवश्यकता रहती है। जीवन के किसी भी सत्य, अनुभूत तत्त्व का उद्घाटन कहानीकार कुशलता से कथा के सूक्ष्म माध्यम के द्वारा करता है। 1. द्रष्टव्य-हिन्दी साहित्य कोश, पृ० 211.