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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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तथ्यों व शाश्वत सत्यों का भी उद्घाटन किया गया है।' शैली की दृष्टि से जहाँ प्राचीन कहानी का प्रारंभ सीधे-सादे नियमित और व्यवस्थित ढंग से होता था, वहाँ आधुनिक कहानी कथानक के किसी भी स्थल से प्रारंभ हो सकती है। यही उसकी वक्रता या विचित्रता है और उसमें चित्रण की प्रवृत्ति अधिक है। दूसरे जहाँ प्राचीन कहानी वर्णन-प्रधान होती थी, वहाँ आधुनिक कहानी रूपकों
और प्रतीकों का सहारा लेकर कलात्मक होती जा रही है। उसकी शैली में निरन्तर विकास होता जा रहा है। शैली की दृष्टि से आधुनिक काल की कहानी वर्णन से चित्रण, चित्रण से विश्लेषण और विश्लेषण से सूक्ष्म विश्लेषण की ओर बढ़ रही है तथा विषय की दृष्टि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समस्याओं के अन्तर्मन के संघर्षों और रहस्यों की ओर प्रगति कर रही है।
कहानी के कथावस्तु, पात्र व चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकालवातावरण, भाषा शैली और उद्देश्य आदि विभिन्न तत्त्व हैं, लेकिन शैली तत्त्व कहानी कला का वह महत्वपूर्ण तत्त्व है कि उसके अन्य तत्त्वों का उपयोग अपने विधान में करता है। फलतः उसमें एक तरह से विधान की स्पष्ट व्यंजना है। कहानी कला में रूपविधान के चातुर्य और हस्त-लाघव का सबसे बड़ा प्रभाव इसी शैली के अन्तर्गत देखा जाता है। एक तरह से इस कला में इसके भाव पक्ष की सफलता कला पक्ष के अधीन है और. कला पक्ष के अन्तर्गत शैली तत्त्व सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। 'भाषा-शैली गद्य की वह कलात्मकता है जिसके विविध प्रयोग और रूपों से कहानीकार अपने भाव-चित्रों को मूर्त करता है। शैली के रूप विधान पक्ष के अन्तर्गत कहानी निर्माण की विभिन्न प्रणालियाँ आती हैं, जैसे-ऐतिहासिक शैली, पत्रात्मक शैली, नाटकीय शैली, आत्मचरित शैली, डायरी शैली और मिश्रित शैली। __ जैन कथा-साहित्य में दो प्रथा पाई जाती है, एक तो संपूर्ण रचना एक ही कथा वस्तु को लेकर लिखी गई होती है जैसे-सुरसुंदरी, खनककुमार, सती दमयन्ती, महासती सीता आदि और दूसरे में कहानी साहित्य की भांति भिन्न-भिन्न कहानियों के संग्रह प्राप्त होते हैं। इनमें जैनेन्द्रकुमार जैन, उदयलाल काशलीवाल, भगवतस्वरूप जैन, प्रो. राजकुमार साहित्याचार्य, डा. जगदीशचन्द्र जैन, डा. ज्योतिचन्द्र जैन, कामताप्रसाद जैन, श्री बालचन्द्र जैन, बाबू कृष्णलाल वर्मा, प्रो. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, बलभद्र जी 'न्यायतीथं' आदि का नाम काफी महत्वपूर्ण हैं। वैसे अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने को
1. हिन्दी साहित्य कोश, पृ. 216. 2. वही, पृ. 221.