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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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आदि रूपों में 'गहरे पानी पैठ' कथा-संग्रह लिखा है, जिसमें उन्होंने जीवन-सागर और साहित्य को मथकर रत्न निकाले हैं। इस संग्रह में भाव प्रवण, ज्ञानदायक और हास्य प्रधान रोचक छोटी-छोटी कथाएँ, चुटकुलों के द्वारा गोयलीय जी ने अपनी साहित्यिक महत्ता सिद्ध कर दी है। 'इन कथाओं में लेखक की कला का अनेक स्थलों पर परिचय मिलता है। आकर्षक वर्णन शैली और टकशाली मुहावरेदार भाषा हृदय और मन को पूरा प्रभावित करती है। इनमें वास्तविकता के साथ ही भाव को अधिकाधिक महत्व दिया गया है। वस्तुतः श्री गोयलीय जी ने जीवन के अनुभवों को लेकर मनोरंजक अख्यान लिखे हैं। साधारण लोग जिन बातों की उपेक्षा करते हैं, आपने उन्हीं को कलात्मक शैली में लिखा है। अतः सभी कथाएं जीवन के उच्च व्यापारों के साथ सम्बन्ध रखती हैं। यद्यपि कथानक, पात्र, घटना, दृश्य-प्रयोग और भाव ये पाँच कहानी के मुख्य अंग इन आख्यानों में समायिष्ट नहीं हो सके हैं, तो भी कहानियाँ सजीव हैं। जिस चीज का हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ता है, वह इनमें विद्यमान है। वर्णनात्मक उत्कण्ठा (Narrative Curiocity) इन सभी कथाओं में है।' गोयलीय जी की भाषा और शैली की सरलता, प्रवाह उनकी अपनी विशेषता है। हिन्दी और उर्दू का समन्वय उन्होंने साहजिकता से किया है। इसी कारण विद्वान से लेकर साधारण शिक्षित पाठक भी उनकी कथाओं का समानता से रसास्वादन कर सकता है। अभिव्यंजना इतने चुभते हुए ढंग से हुई है कि आख्यानों का उद्देश्य ग्रहण करने में हृदय को तनिक भी परिश्रम नहीं उठाना पड़ता। भाषा का प्रवाहात्मक एवं प्रभावात्मक स्वरूप देखिए-'तुम्हारे जैने दातार तो बहुत मिल जायेंगे, पर मेरे जैसे त्यागी विरले ही होंगे, जो एक लाख को ठोकर मारकर कुछ अपनी ओर से मिलाकर चल देते हैं। ईर्ष्या का परिणाम भी उन्होंने विनोदात्मक शैली में छोटी-सी कथा में सरलता से व्यक्त कर दिया है। छोटा-सा आख्यान हमारे हृदय पर अपनी व्यंग्यात्मक भाषा-शैली के कारण प्रभाव डालता है
'भोजन के समय एक के आगे घास और दूसरे के आगे भूस रख दिया गया। पंडितों ने देखा तो आग-बबूला हो गये। 'शेठ जी! हमारा यह अपमान!! महाराज! आप ही लोगों ने तो एक दूसरे को जाय और बैल बतलाया है।'
जैन-सन्देश में पं. बलभद्र जी न्यायतीर्थ की 'ठाकुर' उपनाम से प्रकाशित कथाओं में कथा-साहित्य के तत्त्वों के साथ जीवन की उदात्त भावनाओं का भी सुन्दर चित्रण हुआ है। उनकी शैली भी प्रवाहपूर्ण है, भाषा 1. आचार्य नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य-परिशीलन, पृ. 103-104. 2. अयोध्या प्रसाद गोयलीय-गहरे पानी पैठ-त्यागी, पृ. 24.