Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 532
________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य हुआ वर्णन रहता है। आत्म कथा के द्वारा अपने बीते हुए जीवन का सिंहावलोकन और एक व्यापक पृष्ठभूमि में अपने जीवन की महत्वूपर्ण घटनाओं का अवलोकन संभवित रहता है। आत्मांकन के द्वारा दूसरों को प्रेरणा या लाभ पहुँचाने का प्रधान हेतु होता है । जीवन चरित्र आत्म-कथा से इस अर्थ में भिन्न है कि किसी व्यक्ति द्वारा लिखी गई किसी अन्य की जीवनी जीवन-चरित्र है और किसी व्यक्ति द्वारा या स्वयं लिखी गई स्वयं अपनी जीवनी आत्म-कथा। स्वतंत्र विधा की दृष्टि से आत्म कथा आदि रूपों का साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान स्वीकृत है। 508 'आत्म - कथा साहित्य क्यों लिखा जाता है, यह प्रश्न बड़ा संगत है। दो भिन्न दृष्टिकोण लक्षित होते हैं। एक प्रकार से आत्म - कथानक साहित्य का उद्देश्य होता है - आत्म-निर्माण, आत्म-परीक्षण, या आत्म-समर्थन, अतीत की स्मृतियों को पुर्नजीवित करने का मोह या जटिल विश्व के उलझावों में अपने आपको अन्वेषित करने का सात्त्विक प्रयास। इस प्रकार के आत्म-कथानक साहित्य के पाठकों में स्वतः लेखक होता है, जो आत्मांकन द्वारा आत्म-परिष्कार एवं आत्मोन्नति करना चाहता है। आत्म सम्बंधी साहित्य लिखने का एक दूसरा उद्देश्य यह भी है कि लेखक के अनुभवों का लाभ अन्य लोग उठा सकें। महान् ऐतिहासिक आन्दोलनों या घटनाओं के सपंर्क में रहने से डायरी, संस्मरण या आत्म-कथा लेखक को यह आशा होना स्वाभाविक है कि आगामी युगों में उसकी रचना उसके युग तथा प्रसंगों के समय के प्रमाण स्वरूप पढ़ी जायेगी । यदि धर्म, राजनीति, अथवा साहित्य के इतिहास निर्माण में किसी व्यक्ति का महत्वपूर्ण हाथ रहा हो तो अवश्य ही पाठक उस व्यक्ति के बारे में स्वयं उसकी लिखी बातों को पढ़ना पसन्द करेंगे। ये दोनों स्वतः सिद्ध ( महत्वों) उपयोगों के अतिरिक्त आत्मकथा लेखन के मूल में कलात्मक अभिव्यक्ति की प्रेरणा भी हो सकती है। और अपनी पद- मर्यादा अथवा ख्याति से लाभ उठाने की शुद्ध व्यावसायिक इच्छा भी।" आधुनिक काल में साहित्य के अन्य रूपों के साथ आत्म कथा की ओर भी ध्यान आकृष्ट होने की आवश्यकता है। गद्य में आत्म कथा लिखने का प्रारंभ तो आधुनिक काल में हुआ । मध्य काल में जैन महाकवि बनारसीदास जी की 'अर्द्ध-कथा' पद्य में लिखित हिन्दी - साहित्य की सर्वप्रथम आत्मकथा मानी जायेगी। जैन साहित्य में जीवनी दो प्रकार की प्राप्त होती है, जिसका उल्लेख हम पीछे कर चुके हैं, (1) तीर्थंकरों की तथा ऐतिहासिक व धार्मिक सती स्त्रियों 1. हिन्दी साहित्य कोश भाग-2, पृ० 89.

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