Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 545
________________ उपसंहार 521 प्राचीन परम्परा का प्रभाव लक्षित है। विषय-वस्तु की दृष्टि से तो विशेष परिवर्तन नहीं हो सकता, क्योंकि धार्मिक साहित्य होने से उससे सम्बंधित विषय वस्तु का चुनाव आवश्यक हो जाता है। लेकिन उसी विषय वस्तु को युगीन वातावरण, विचारधारा या साम्प्रत समाज को भी साथ लेते हुए अवश्य प्रस्तुत किया जा सकता है, ऐसा विचार आता है। जैसे कथानक धार्मिक या प्राचीन ग्रन्थों में से ग्रहण किया जा सकता है, तो उसी प्रकार आधुनिक वातावरण से भी विषय वस्तु को चुनकर उन उदात्त तत्त्वों का संदेश प्रत्यक्ष या परोक्ष दिया जा सकता है, जो हिन्दी जैन साहित्यकार को अभिप्रेत हैं। निबंध साहित्य, कथा-साहित्य, नाटक, आत्मकथा-जीवनी-संस्मरण पत्रादि गद्य स्वरूप में इस प्रकार की नूतनता-आधुनिकता-महत्वपूर्ण हो सकती है। चरित्रात्मक प्रबंध काव्य, तीर्थंकरों की या आचार्यों की जीवनी तथा दार्शनिक निबंध साहित्य में मूलाधार को ग्रहण करते हुए भी चरित्र-चित्रण, संवाद, वातावरण, भाषा-शैली में यह रूप होना चाहिए, जिसकी आधुनिक हिन्दी जैन-साहित्य में प्रायः अनुपस्थिति है। यत्र-तत्र आलोच्य जैन साहित्य की कुछ रचनाओं में आधुनिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी दृष्टिगत होता है, जैसे-श्री वीरेन्द्रकुमार जैन के उपन्यास 'मुक्तिदूत' या धन्यकुमार जैन के खण्ड काव्य 'विराग' में। 'वर्धमान' महाकाव्य में भी मानव-कल्याण का संदेश स्फुट होता है तो 'वीरायण' महाकाव्य का तो उद्देश्य ही जन-जन में भगवान महावीर के जीवन व संदेश का प्रसार कर उसे लोकप्रिय बनाने का है। नाटक साहित्य में बहुत-से ऐसे नाटक हैं, जिनका मंचन सरलता से हो सकता है। कभी-कभी अभिनय के सफल प्रयत्न किये भी गये हैं, लेकिन जैन धर्म की कठोर अनुशासन या संकीर्णता यहाँ बाधक बन जाती है। तीर्थंकरों की जीवनी का मंचन जैन समाज के विशिष्ट वर्ग या व्यक्तियों को पसंद नहीं आता है, अतः इसका वे सदैव विरोध-प्रदर्शन करते रहते हैं, जिससे भविष्य में कभी जैन नाटकों को अभिनीत करने का किसी को साहस नहीं होता है। इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करने को शेष है। __ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में निबंध विधा में प्रशंसनीय कार्य हुआ है, दार्शनिक आचार-विचार परक, वर्णनात्मक और विचारात्मक विषयों पर विद्वान् लेखकों द्वारा उत्कृष्ट निबंधों की रचना हुई। हिन्दी जैन निबंध साहित्यकारों से अभी इस क्षेत्र में और अपेक्षा है। जीवनी-साहित्य भी विशाल परिमाण में प्राप्त होता है, जिनमें तीर्थंकरों के अतिरिक्त गुरु-आचार्यों की जीवनियाँ भी उपलब्ध होती हैं। इसी प्रकार जैन समाज के महत्वपूर्ण व्यक्तियों की थोड़ी जीवनियाँ

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