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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
साहित्य में हिन्दी भाषा के क्रमिक विकास के साथ उसके शिल्प विधान, भाषा व शैली में भी परिवर्तन हुआ है। शैली में बोध प्रदान या उपदेशात्मक वातावरण की अपेक्षा विश्लेषणात्मक पृष्ठभूमि का प्रारंभ कर लिया है। धार्मिक साहित्य होने से सर्वथा धार्मिक सन्देश से रहित शैली संभव नहीं हो सकती। जहाँ एक
ओर प्रसिद्ध साहित्यकारों की अभिनव समृद्ध शैली से गद्य-साहित्य समृद्ध है, वहाँ सामान्य लेखकों की गद्य-कृतियों से जैन साहित्य को संपन्नता प्राप्त हुई है। गद्य की विविध शैली व रूप का निखार निबंध साहित्य तथा कथा-साहित्य में विशेष रूप से प्राप्त होता है, जब कि उपन्यास, आत्म कथा, आलोचना का साहित्य अपेक्षा कृत कम प्राप्य है।