Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 518
________________ 494 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य कारण क्षम्य हो जाता है लेकिन इसी प्रकार लय या राग भंग और प्रास का रूप ठीक रखने के लिए स्त्री लिंग-पुल्लिंग का भेद भी छोड़ दिया गया है, जो थोड़ा खलता है। __ 'खूब करमों का तमाशा में पिया देख लिया। लशकर (लश्कर) इन्द्र रानी (इन्द्राणी) करिशमा (करिश्मा) किसमत्, परताप (प्रताप) (त्ररण) पृ. 98, 136, 130) आदि शब्दों का प्रयोग चुभता है। शिरोमणि के लिए 'श्रोमणी' और 'चक्रवती' के बदले 'चकरवती' में गलत शब्द प्रयोग नजर आता है। इन सब कमियों के बावजूद भी नाटक रोचक कथावस्तु, सुन्दर संवाद तथा उद्देश्यात्मक वातावरण के कारण अच्छी तरह से लोक भोग्य हो सके थे।' इस नाटक (कमलश्री) की शैली पुरातन है। भाषा उर्दू मिश्रित है तथा एकाध स्थल पर अस्वाभाविक भी प्रतीत होती है।' ब्रजकिशोर नारायण लिखित 'वर्धमान महावीर' पूर्णतः अभिनेय है। लेखक ने रंगमंच के लिए ही इस नाटक की रचना की है और अपने उद्देश्य में सफल भी हुए हैं। सभी घटनाएँ दृश्य हैं तथा कथोपकथन की क्षमता नाटकीय प्रभाव पैदा करता है, क्योंकि श्राव्य, अश्राव्य और नियत श्राव्य तीनों प्रकार के संवाद कथानक को गति प्रदान करने वाले तथा पात्रों के विकास पर प्रकाश डालने वाले हैं। अभिनय सम्बंधी त्रुटियाँ बहुत कम पाई जाती हैं। वैसे नाटक के लिए उपकारी से तत्त्व संगीत और नृत्य की कमी रही है। भाषा-शैली आधुनिक और गतिशील है। छोटे-छोटे संवाद प्रभावशाली बन पड़े हैं। रानी त्रिशला और दासी सुचेता का निम्नलिखित वार्तालाप भाषा शैली का प्रवाह व गति व्यक्त करता है 'त्रिशला-सुचेता! मैं तालाब में सबसे आगे तैरते हुए दोनों हंसों को देखकर अनुभव कर रही हूँ, जैसे मेरे दोनों पुत्र नन्दिवर्धन और वर्धमान जलक्रीड़ा कर रहे हैं। दोनों में जो सबसे आगे तैर रहा है वह ..... सुचेता-वह कुमार नन्दिवर्धन है महारानी! त्रिशला-नहीं सुचेता, वह वर्धमान है। नन्दिवर्धन में इतनी तीव्रता कहाँ ? इतनी क्षिप्रता कहाँ ? देख, देख, किस फुर्ती से कमल की परिक्रमा कर रहा है शरारती कहीं का।' श्री भगवत जैन का आधुनिक-हिन्दी-नाटक साहित्य में प्रदात्त भी महत्वपूर्ण प्रदान है। वे कथाकार के अतिरिक्त सफल नाटककार भी हैं। 'गरीब' 1. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग-2, पृ० 117.

Loading...

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560