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आधुनिक हिन्दी - जैन- गद्य - साहित्य का शिल्प-विधान
उनका सामाजिक नाटक है तथा 'भाग्य' पौराणिक है। दोनों की भाषा-शैली विषयानुकूल है। 'गरीब' नाटक की भाषा विशेष रूप से व्यंग्यात्मक एवं गतिशील है। उन्होंने अपने नाटकों को रंगमंचीय बनाने का पूरा ख्याल रखा है। अतः साज-सज्जा, अभिनय, वेश-भूषा आदि संकेतों का अच्छा उल्लेख मिलता है। नाटककार ने अपने नाटकों की भाषा-शैली एवं विशेषताओं के सम्बन्ध में स्वयं लिखा है-जहाँ तक हुआ है, इसे सार्वजनिक बनाने का प्रयत्न किया है। कथानक को प्रायः सभी घटनाएँ देने की चेष्टा की गई है, किन्तु स्टेज करने वालों की सुविधा, असुविधा का ध्यान पहले रखा है। + + + इसी तरह कम से कम पात्र चुने हुए आधुनिक ढंग के संवाद और थोड़े समय में समाप्त हो सकने योग्य संक्षिप्त प्लोट आदि उन सभी बातों को पहले कुछ सोचने के बाद में लिखा गया। साथ ही, कुछ वे बातें भी शायद आपको इसमें मिल सके, जो नाटक साहित्य की कसौटी पर कसी जाया करती है। सही है कि आज इस ढंग के नाटक लिखने का चलन कम हो गया है, यह पुरानी पारसी कम्पनियों की देन है। लेकिन यथार्थवाद की शपथ लेकर यह कहा जा सकता है कि भले ही इस शैली को साहित्यिक न कहा जाय, किन्तु स्टेज पर यह जो प्रभाव छोड़ती है, वह मननशील साहित्यिक शैली की नाटिकाएँ नहीं।' नाटककार ने इसमें 'फ्लेशबेक' पद्धति का प्रारंभ में ही प्रयोग किया है, जो आधुनिक साहित्य की विशेषता कही जायेगी। 'गरीब' नाटक की भाषा भी अंग्रेजी के शब्द प्रयोग से बोलचाल की जीवंत भाषा है। बीच-बीच में कहीं गीत या लंबे स्वगत कथन न आने से कथा का प्रवाह विशृंखलित नहीं हो पाया है। अतः रोचकता का निर्वाह हुआ है। । इस नाटक के अभिनय से समाज की विचारधारा पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। भगवत जी के इस 'गरीब' नाटक में 'युग की सामाजिक विषमता और उसके प्रति विद्रोह' की भावना है। पूंजीपतियों की ज्यादती और गरीबों की करुण आह एवं धनी और निर्धन के हृदय की भावनाओं का सुन्दर चित्रण किया गया है। रुपयों की माया और लक्ष्मी की चंचलता का दृश्य (स्वरूप) दिखलाकर लेखक ने मानव हृदय को जगाने का यत्न किया है। इसमें अनेक रसमय दृश्य वर्तमान हैं, जो दर्शकों को केवल रसमय ही नहीं बनाते, किन्तु रस-विभोर कर देते हैं। भगवत जी ने वस्तुतः सीधी-सादी भाषा में यह सुन्दर नाटक लिखा है।' 'बलि जो चढ़ी नहीं' भगवत जी का अहिंसा से सम्बंधित विविध विषयों का एकांकी संग्रह है। जिनकी कथावस्तु पौराणिक होने
1. भगवत जैन - भाग्य - नाटक - भूमिका, पृ० 4.
2. नेमिचन्द्र शास्त्री - हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन - भाग - 2, पृ० 117.
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