Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 521
________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 497 की है। इसी कथा वस्तु पर से भगवत जैन ने कहानी तथा 'बलि जो चढ़ी नहीं' एकांकी की सफल रचना की है। दयानंद जी ने इसमें गीत-नृत्य की रचना द्वारा नाटक को रंगमंचीय बनाये रखा है। लेखक ने प्रस्तावना में कहा है कि-अहिंसा धर्म की महानता को लेकर इस नाटक का सृजन किया गया है। + + + प्रस्तुत नाटक का मुख्य अभिप्राय बलि जैसे जघन्य पाप पूर्ण कुकृत्यों की ओर इंगिता करना है और इसके विपरीत अहिंसा धर्म की उच्चता से उसकी तुलना। + + + यह नाटक आधुनिक रीति से तैयार किया गया है, जिसे आज के युग के प्रगतिशील तरुण सफलतापूर्वक रंगमंच पर खेल सकें। दो अंक में विभक्त इस नाटक में प्रथम अंक में 12 दृश्य एवं दूसरे में 10 दृश्यों की योजना की गई है। प्रथम प्रयास होने पर भी टेकनिक की दृष्टि से भी सफल कहा जायेगा। कहीं-कहीं बीच-बीच में संवादों में जैन दर्शन के सिद्धान्तों का विश्लेषण रसास्वादन में बाधा उत्पन्न करता है। जैसे कर्म के सिद्धान्त का, बलि व देवी पूजन के विरुद्ध अहिंसा के सिद्धान्त की चर्चा दो गौण पात्रों के बीच होती है, जो थोड़ी नीरस हो जाती है। उसी प्रकार इन्द्रदत्त जैसे छोटे बालक के मुख से सुख-दु:ख, जीवन-मृत्यु, जीवन की विचित्रता, भय, कष्ट, गरीबी, भाग्य व संसार चक्र आदि के विषय में विस्तृत विचार अस्वाभाविक लगते हैं लेकिन कथा के प्रवाह में बाधक नहीं होने से सह्य होते हैं। संक्षेप में सरल शुद्ध खड़ी बोली में लिखित यह नाटक प्रायः नीरसता नहीं पैदा करता तथा संवाद भी छोटे-छोटे व सशक्त हैं, स्वगत कथन भी बहुत कम और संक्षिप्त है। नाटक कार ने अहिंसा तत्त्व का जोर-शोर से प्रतिपादन किया है। निबन्ध : आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य की सबसे सशक्त एवं समृद्ध विधा किसी को कहना हो तो वह निबंध साहित्य को ही कहा जा सकता है। न केवल हिन्दी में, बल्कि संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में भी आचार-विचार एवं दार्शनिक निबंधों की पर्याप्त उपलब्धि होती है। आज के भौतिक युग में जब धर्म प्रेमी विद्वानों ने महसूस किया कि धर्म के दार्शनिक गूढ़ तत्त्वों को समझना सामान्य जनता के लिए कठिन हो सकता है, तो उन्होंने प्राचीन धर्म ग्रन्थों में से दार्शनिक तत्त्वों को सरल भाषा-शैली व विवेचनात्मक पद्धति से प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय कार्य किया। आधुनिक हिन्दी निबंध साहित्य बड़े-बड़े तत्त्ववेत्ता विद्वानों एवं आचार्य मुनियों को प्राप्त कर सौभाग्यशाली सिद्ध हुआ है। इनमें प्रमुख हैं-डा. मोहनलाल मेहता, स्व. पं० सुखलाल जी, पं० दलसुख मालवणिया, 1. दयाचन्द जैन-अहिंसा परमोधर्म-प्रस्तावना, पृ० 3.

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