Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 505
________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 481 विषयगत विविधता भी पाई जाती है, जैसे-मनो विश्लेषणात्मक सामाजिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, राजकीय, आदि। कहानी के क्षेत्र में हिन्दी-साहित्य ने विकास का इतना सर्वोच्च शिखर सर कर लिया है कि उसकी दिन-प्रतिदिन की हिरन गति से आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता। अन्य भाषाओं से अनूदित कहानी साहित्य की तो एक अलग सृष्टि रची जा सकती है। मौलिक सर्जना में भी पाश्चात्य प्रभाव को ग्रहण कर आधुनिक युग में अनेकों कहानीकार के नाम गिनाये जा सकते हैं। यहाँ हमारा उद्देश्य आधुनिक हिन्दी कहानी का विश्लेषण करने का नहीं है। केवल एक इंगित ही पर्याप्त होगा कि जैसा वातावरण, विषय-वैविध्य, भाषा-शैली, नूतन चारित्रिक विश्लेषणात्मक पद्धति, कथा वस्तु का चयन, संवादों की तीव्रता या मार्मिकता हम हिन्दी कहानी साहित्य में देख सकते हैं, ऐसी आशा जैन कथा-साहित्य से रखना असंगत रहेगा। क्योंकि यह साहित्य एक निश्चित सीमा से मर्यादित है, कथा वस्तु भी प्राचीन होने से आधुनिक वातावरण, समाज, युग व मानवदर्शन की झांकी या विश्लेषण संभव नहीं हो पाता और उद्देश्य, भी धार्मिक प्रसार-प्रचार का होने से कहीं-कहीं उपदेशात्मकता या धार्मिक तत्त्वों का निरूपण झलक पड़ना स्वाभाविक है, इसकी अच्छाई या कमी के बावजूद भी। भाषा-शैली तो यही आधुनिक खड़ी बोली प्रयुक्त होती है, लेकिन इसमें भी भाषा के नूतन प्रयोग या शैली की विविधता का चमत्कार यहाँ कम ही देखा जायेगा, क्योंकि सभी का आधार स्थल एक है। फिर भी ऐसा करने का कतिपय इरादा नहीं है कि उपलब्ध आधुनिक कथा-साहित्य उत्कृष्ट कोटि का नहीं है। बहुत सी रचनाओं से रसास्वादन एवं आध्यात्मिक आंनद प्राप्त होता है। दूसरी बात यह है कि उच्च कोटि का विद्वान साहित्यकार चाहे प्राचीन विषय वस्तु को ग्रहण करे या आधुनिक विषय वस्तु या वातावरण ग्रहण करे, उसकी मौलिकता, तार्किकता भावों की समृद्धि तथा टेकनिक की सूझ-सफलता अभिव्यक्त हुए बिना कभी नहीं रहेगी। जैन साहित्य को भी ऐसे रचनाकार मिले हैं जिनको पाकर जैन साहित्य अपने को धन्य मान सकता है। जैन कथाओं में बाह्य क्रिया-कलाप, विविध घटनाएँ, धार्मिक वातावरण तथा रसमय कथोपकथन से पाठक की जिज्ञासा वृत्ति निरन्तर उत्सुक बनी रहती है एवं रसास्वादन प्राप्त होता है। इनमें कहीं-कहीं तो प्राचीन कथा वस्तु के साथ नवीन वातावरण, समाज रचना एवं मानव हृदय के क्रिया-व्यापारों के सूक्ष्म मार्मिक विवेचन परोक्ष या प्रत्यक्ष प्राप्त होता है। जैनेन्द्र कुमार जैन, भगवतस्वरूप जैन, बालचन्द्र जैन के कथा-साहित्य में हम टेकनिक की कुशलता के साथ मानव-जगत की समानता, समभाव,

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