________________
482
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
लोकवाही आत्म विश्लेषण के साथ अन्य चरित्रों के क्रिया-कलापों का निरीक्षण पाते हैं और कथा वस्तु प्राचीन या ऐतिहासिक होने पर भी नूतन शिल्प विधान प्रकट हुए बिना नहीं रहता।
__हिन्दी जैन कथा-साहित्य के प्रस्तुतीकरण के प्रयास प्रायः एक समान हैं, फिर भी किसी ने कथा वस्तु को उपदेशात्मक शैली में प्रस्तुत किया है, अथवा आचार-विचार सम्बंधी विवरण देने का उत्साह प्रदर्शित किया है, वैसे ऐसे लेखकों की संख्या कम है। बाबू कामता प्रसाद जी के कथा-साहित्य में उपदेशात्मक विचारधारा स्पष्ट रूप से मिलती है, फिर भी उनकी भाषा शैली विशुद्ध साहित्यिक है। बाबू कृष्णलाल वर्मा के कथा-साहित्य की भाषा शैली
अत्यन्त मर्मस्पर्शी, तीव्र भावों की पूर्ण अभिव्यक्ति करने वाली बन पाई है। 'महासती सीता' में नारद जी अपने अपमान का बदला लेने के लिए व्याकुल होकर बड़बड़ाते हुए कहते हैं-"हूँ! यह दुर्दशा, यह अत्याचार! नारद से ऐसा व्यवहार। ठीक है। व्याधियों को देख लूंगा। सीता! सीता! तुझे धन-यौवन का गर्व है, उस गर्व के कारण तूने नारद का अपमान किया है। अच्छा है! नारद अपमान का बदला लेना जानता है। नारद थोड़े ही दिनों में तुझे इसका फल चखायेगा और ऐसा फल चखायेगा कि जिसके कारण तू जन्म भर तक हृदय-वेदना से जलती रहेगी।'
___ इन उपलब्ध कथा संग्रहों में बहुत-सी कथाओं के प्रारंभ तथा अन्त में धार्मिक ढंग से उपदेश-सारांश की पद्धति भी देखी जाती है, जिससे पाठक कुछ बोध ग्रहण कर सके। लेकिन ऐसे तरीके से रोचक कथा वस्तु से युक्त सुन्दर कथा अन्त में नीरस बन जाती है। 'मोक्ष मार्ग की सच्ची कहानियाँ' (भाग 1-2) में मोहनलाल शास्त्री जी ने प्रायः सभी कहानियों के प्रारंभ और अंत में इस प्रथा का सहारा लिया है। जैसे 'वारिषेणकुमार की कहानी' बहुत सुन्दर है, उसके अंत में लिखा है-'सत्य है, पुण्यवान मनुष्य पर कितनी ही विपत्ति क्यों न आये, वह क्षण भर में हर जाती है। इसलिए हम सबको उचित है कि अचौर्य व्रत ग्रहण कर पुण्य का संचय करे। ऐसे ही 'वज्रकुमार मुनि के समान हम सबको धर्म की प्रभावना बढ़ाना चाहिए और दान, पूजा, शील, संयम, रथोत्सव धर्मोपदेश आदि के द्वारा जैन धर्म की उन्नति करना चाहिए। 'हिंसक जीवों को धन श्री के समान दोनों जन्म में दु:ख भोगना पड़ता है। यह जानकर हिंसा का त्याग करना चाहिए। 'साधु भेषधारी चोर की कहानी' में लेखक ने सीधे ही 'सारांश रूप' में लिखा है-'सारांश-चोरी महा पाप है। इस 1. मोहनलाल शास्त्री-मोक्ष मार्ग की सच्ची कहानियाँ, पृ. 38-39. 2. वही, पृ. 31. 3. वही, पृ. 43.