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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
रचना में कुशलता से उपयोग करके महाकाव्य की सर्गबद्धता का भी यथेष्ट निर्वाह किया है। सर्ग-प्रारंभ में एक छन्द तथा अंत में अन्य छंद के नियम का भी समुचित निर्वाह हुआ है।
'मानस' की पद्धति पर दोहा-चौपाई-शैली पर 'वीरायण' की रचना हुई है। इसमें दोहा व चौपाई छन्द की ही प्रमुखता है, कहीं-कहीं सोरठा छंद का भी प्रयोग किया गया है। लघु आकार दोहे में कवि ने अनेक मधुर, गूढ भाव भर दिए हैं, विशेषकर दृष्टान्त या उदाहरण देने के लिए आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक सत्य-तथ्य अभिव्यक्त करने के लिए दोहा छंद का उपयोग कवि ने लाघवता से किया है। कवि ने प्रयुक्त छंद के विषय में प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया है कि
सुगम्य है शैली इनकेरी, कहत सुनत समुझत नहिं देरी। चौपाई बारी फलदाता, सरल सोरठा कछु सोहाता। 9-3 लिखे दोहरा दो मन है रे, इस उत चित शान्ति को प्रेरे। कहे हरिगीत में ही खरे, महावीर प्रभु के गुन मधुरे। 1-5.
कवि को छन्द, अलंकार प्रबन्ध रीति आदि में अपनी प्रवीणता या कुशलता न होने के कारण दुःख नहीं है। इन सबमें अपनी लघुता स्वीकार कर कवि ने वैसे विनय प्रदर्शित किया है, लेकिन महाकाव्यों में ये सभी आवश्यक तत्त्व हमें प्राप्त होते हैं। कवि स्व-लघुता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि
'छन्द प्रबंध भाव सरभेदा, कवित रीत कुछ नहि को कहेता। इनका है अफसोस न मन में, भले जिनहू न मोहि कविजन में। 369 मैं नहि पंडित नहि कवि ज्ञानी, तदपि भक्ति की रीत पिछानी। लिखा काव्य मति के अनुसारा, संत सुजन कवि करहु स्वीकारा॥
17, 389, 340. चौपाई छन्द :
___ चौपाई छन्द 'वीरायण' का प्रमुख छन्द है, जिसका आदि स्रोत मिलता है अपभ्रंश के पद्धड़िया छन्द में। अपभ्रंश साहित्य में पद्धड़िया का कड़वक के रूप में प्रयोग किया गया है। अपभ्रंश की इसी कड़वक वाली शैली हिन्दी की 'चौपाई-दोहा' शैली की उत्पादिका है। डा. हीरालाल जैन का कथन है कि 'कडवकवाली शैली महाकाव्यों में ही प्रयुक्त होती थी।' हिन्दी के कवियों ने 1. डा. रामसिंह तोमर : 'प्रेमी अभिनंदन ग्रन्थ' के अन्तर्गत-जैन साहित्य की हिन्दी
साहित्य को देन। पृ० 468. 2. डा. हीरालाल जैन : नागरी प्रचारिणी पत्रिका, अंक 3-4, पृ० 113.