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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
भाषा-शैली, वातावरण, संवाद, चरित्र-निरूपण आदि दृष्टि से आधुनिक युग की कृति के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। फिर भी उसकी संपूर्ण 'टेकनीक' आधुनिक वातावरण, वर्णन-प्रणाली एवं विचारधारा के अनुरूप नहीं प्रतीत होती। इसके बहुत-से कारण हो सकते हैं। (1) लेखक सोद्देश्य उपन्यास लिखने बैठे हैं, धार्मिक शिक्षा, दीक्षा व संस्कार आधुनिक पीढ़ी में फैले इस हेतु उन्होंने सज्जन, संस्कारी, धार्मिक तथा दुर्जन, असंस्कारी, उदंड दो प्रमुख नायक-प्रतिनायक की काल्पनिक सृष्टि की। नारी के भीतर भी संयम, लज्जा, चारित्र्य, धर्म भावना, सहिष्णुता, शीलव्रत, सुकुमारता व विनय आदि गुणों का प्रसार हो, इस नीति के अनुसार उन्होंने सुशीला नायिका का चरित्र प्रस्तुत किया है। स्वयं लेखक इस उपन्यास की आवश्यकता व उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि-वर्तमान समय में पाठकों की रुचि उपन्यासों की ओर दिन-प्रतिदिन झुकती जाती है। अनेक लोगों को तो व्यसन-सा हो गया है कि थाली परोसी हुई रखी रहती है, परन्तु बाबू साहब उसकी ओर देखते ही नहीं हैं। हमारे जैन समाज में भी उपन्यास के सैकड़ों भक्त हैं, परन्तु वे व्यर्थ समय खोने और भिन्न धर्म और भिन्न वासनाओं से वासित हृदय होने के सिवाय, कुछ लाभ नहीं उठा सकते हैं। ऐसी अवस्था में उपन्यासों के द्वारा लोगों को यदि चरित्र संशोधन की तथा धर्म श्रद्धा की शिक्षा दी जाये तो सहज ही में बहुत-सा लाभ हो सकता है। इस विचार से तथा संसार का झुकाव किस ओर को हो रहा है, यह देखकर इस उपन्यास लिखने का प्रारंभ किया गया है।' ग्रन्थकर्ता ने इस उपन्यास की रचना जैन धर्म के अपूर्व सिद्धांत-रत्नों को कथा के प्रवाह में मिला दिये हैं।
जैन धर्म के तत्त्वों का स्वरूप नायक जयदेव, रतनचंद मुनि एवं सुशीला के कथनों, विचारों में दिखाई पड़ता है। इसलिए स्वाभाविक है कि जैन धर्म के बल्कि सामान्यतः सभी धर्मों के प्रमुख सिद्धान्त जैसे सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, अपरिग्रह, समानता, संयम आदि के विषय में चलती चर्चा-विचारधारा को सभी जाने-समझें, अनुभव कर सकें, यह प्रमुख उद्देश्य रहा है। लेकिन जैन धर्म की दार्शनिक परिभाषा में इन तत्त्वों का उल्लेख हुआ है, वहाँ पाठक गांभीर्य या कठिनता अनुभव करता है, जो बिल्कुल स्वाभाविक है। (2) दूसरी बात यह है कि कथा वस्तु ऐतिहासिक, काल्पनिक, पौराणिक या तो आधुनिक वातावरण या मानस के अनुकूल सामाजिक या व्यक्तिपरक भी नहीं है। अतः आधुनिक वातावरण में ऐतिहासिक पात्रों की नामावली या राजा-महाराजाओं, राजकुमारों के क्रिया-कलापों का मेल नहीं बैठता। कथानक यदि पूर्णत:
1. गोपालदास बैया-सुशीला उपन्यास-भूमिका, पृ० 2.