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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
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'मुक्ति दूत' की कथावस्तु के विषय में चतुर्थ अध्याय में विस्तृत विवेचन किया गया है। इसलिए अब इसकी चर्चा यहाँ अनावश्यक या पुनरावर्तन समझी जायेगी। केवल संक्षेप में यह कहना उचित रहेगा कि 'मुक्ति दूत' की कथा जैन जगत् के लिए अपरिचित नहीं है। वैसे अन्य पौराणिक कथाओं की तरह सौन्दर्य प्रेम, परिणय, कलह से युक्त सर्वांगीण प्रणय कथा है, फिर भी उन सबसे अलग, अतुलनीय एवं अनोखा वातावरण लेकर यह उपन्यास लिखा गया है, जिसके लिए उपन्यासकार अभिनंदन के पात्र हैं। कथा वस्तु के विषय में 'आमुख' में ही ज्ञानपीठ के विद्वान संपादक लक्ष्मीचन्द्र जैन ने सर्वथा युक्तिसंगत बता दिया है कि-मुक्ति दूत की मोहक कथा, सरस रचना अनुपम शब्द-सौंदर्य
और कवित्व से परे जाने के लिए भी माला के अंतिम तीन मनकों की तरह सर्वोपरी हृदय से, आंख से और माथे से लगाने लायक है। पवनंजय के अहम्, आत्म विकास एवं आत्म विजय की क्रमश: कथा है। + + + मुक्ति दूत की कथावस्तु जितनी तल पर है सिर्फ उतनी नहीं है, उसके भीतर एक प्रतीक कथा चल रही है, जिसे हम ब्रह्म और माया, प्रकृति और पुरुष की द्वन्द्व लीला कह सकते हैं। अनेक अन्तर्द्वन्द्व, मोह-प्रेम, विरह-मिलन, रूप सौंदर्य, दैव-पुरुषार्थ, त्याग-स्वीकार, दैहिक कोमलता, आत्मिक मार्दव, ब्रह्मचर्य, निखिल रमण और इनके आध्यात्मिक अर्थ कथा के संघटन और गुम्फन में सहज ही प्रकाशित हुए हैं। पवनंजय इस बात का प्रतीक है कि वह पदार्थ को बाहर से सीधे पकड़कर उस पर विजय पाना चाहता है और उसी में उसका पराजय है, एकांगिता है, जबकि अंजना का पात्र भावना या हृदयवाद का प्रतीक है, जो केवल पुरुष को ही नहीं, समस्त विश्व को शांति दे सकता है।" वीरेन्द्र जी ने मूल पौराणिक कथा को विशेष ग्राह्य, मनोवैज्ञानिक व असरकारक बनाने के लिए कहीं-कहीं परिवर्तन-परिवर्धन किये हैं, जो पाठक को विशेष रस युक्त लगते हैं। 'सुशीला' की तरह मुख्य कथा के साथ अवान्तर कथाएँ नहीं होने से मुख्य कथा वस्तु पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित हुआ है। इसकी कथा में रोमान्च के सब गुण होते हुए भी वह सर्वत्र करुण-कथा ही दिखाई पड़ती है। प्रत्येक पात्र व्यथा, पीड़ा का बोझ लिए चल रहा है। कथा की सार्थकता अन्तिम अध्याय की अंतिम पंक्तियों में पूर्ण झलकती है जहाँ 'प्रकृति' पुरुष में लीन हो गई और पुरुष प्रकृति में अभिव्यक्त हो उठा।
गोपालदास जी के 'सुशीला' उपन्यास में पात्रों का चरित्र-चित्रण प्रत्यक्षी रूप से ओर सरल ढंग से हुआ है, वहाँ मुक्ति दूत में प्रसंग, घटनाएँ, संवाद के द्वारा विश्लेषणात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से परोक्षतः किया गया है। पात्रों की