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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
विद्वान निबंधकार आदि को अपरिचितता के अंधकार से बाहर निकाल कर लोकप्रियता का प्रकाश दिलवाने का यश प्राप्त करना नहीं चाहता। ऐसे अनेक जैन साहित्य के साहित्यकारों की रचना से हिन्दी साहित्य का आध्यात्मिक-साहित्य भंडार अधिक पुष्ट व समृद्ध हो सकता है।
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मनोवती :
जीवन की विडम्बनाओं को शांति एवं प्रेम से समाज जीवन के संघर्षों को अहिंसामय वातावरण से यथाशक्य दूर कर मानव जीवन में आध्यात्मिक चेतना को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य रोचक कथा वस्तु और वर्णनों के द्वारा करने का जैन कथा साहित्य कर रहा था और आज भी करता है। आज का व्यक्ति प्राचीन या नूतन कथा अंश को आधुनिक वातावरण में पढ़कर विक्षुब्ध चित को शान्त कर सात्त्विक आनंद प्राप्त कर सके, यही उद्देश्य धार्मिक साहित्य का रहता है और इसमें प्रायः सफलता भी प्राप्त होती है। यद्यपि जैन उपन्यास साहित्य अभी शैशवावस्था में है।
'मनोवती' श्री जैनेन्द्रकिशोर द्वारा लिखित काल्पनिक धार्मिक उपन्यास है, जो अपनी काल्पनिक, सरल, रोचक कथा वस्तु के कारण पाठक का मनोरंजन तो करता है, लेकिन साथ में धार्मिक विचारधारा के कारण उनके हृदय को भी उदारचेता पाने का अनुरोध करता है। इसकी कथा वस्तु का उल्लेख पहले हम कर चुके हैं, अतः यहाँ दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहाँ हम केवल पूरे गद्य साहित्य की शिल्प - विधि, भाषा-शैली, वर्णन, उद्देश्यादि का ही विशेषत: विवेचन करना अभीष्ट समझेंगे।
जैनेन्द्रकिशोर जी का यह प्रथम प्रयास होने से स्वाभाविक है कि चरित्र-चित्रण और कथोपकथन में तीव्रता - मार्मिकता का अभाव रह गया हो, फिर भी औपन्यासिक विकास क्रम की दृष्टि से इसका काफी महत्व है।
'मनोवती' का चरित्र प्रमुख होने से उसका मनोविश्लेषणात्मक ढंग से प्रस्तुतीकरण किया गया है। उनके सामने अन्य सभी पात्र दब से गये हैं। एक दो जगह अपने पिता से स्पष्ट निर्भीकता पूर्ण बातें करना कुछ अप्रतीतिकर अवश्य लगता है, फिर भी लेखक ने उस पात्र की विशेषताओं को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। रतनसेन का चरित्र अधिक विश्वसनीय स्थिति में हुआ है। वैसे मनोवती के सामने वह उभर नहीं पाता है। गुणों की खान - सी मनोवती के सामने वैभव से अहंकारी बने हुए बुद्धिसेन का व्यवहार कृत्रिम और अवैज्ञानिक-सा जंचता है, क्योंकि बुद्धिसेन जैसे सदाचारी और विनयी व्यक्ति का मानसिक