________________
आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान
443
कि नहीं? इससे पूर्व उपन्यास के आवश्यक तत्त्वों के सम्बंध में संक्षेप में देखा जाय तो अनुचित नहीं रहेगा।
उपन्यास जीवन की ही प्रतिच्छवि होने से जीवन की यथार्थता उसमें इच्छित रहती है। जीवन की सुंदरता, असुंदरता, सत्य, असत्य, घात-प्रतिघात, आशा-निराशा सब कुछ उसमें अंकित रहता है। जीवन और जगत् के व्यापक रूप को उपन्यास में प्रतिच्छवित किया जाता है। उपन्यास पद्य में महाकाव्य के निकट रहता है, जीवन की विविधता, विस्तृतता, वर्णनात्मकता, पात्रों की बहुलता आदि में साम्य है, लेकिन महाकाव्य काव्य का स्वरूप होने से वहां कल्पना को काफी अवकाश है, जब उपन्यास वास्तविक जगत् से सम्बंधित होने से यथार्थ को महत्व दिया जाता है। कल्पना तत्त्व को अवकाश नहीं है ऐसी बात नहीं, लेकिन यथार्थ का भी ख्याल रखा जाता है। जबकि नाटक के साथ विस्तार में समानता होते हुए भी काफी अंतर है। नाटक के तत्त्वों और उपन्यास के तत्त्वों में विभिन्नता, रंगमंच-वर्णन, वेश-भूषा, संवाद व उद्देश्य में देखी जाती है। नाटक दृश्य विधा है, जबकि उपन्यास पाठ्य विधा होने से इसमें लेखक के विचारों को विशेष स्थान मिल सकता है, जबकि नाटक में नाटककार सृष्टि से विधाता की तरह पूर्णतः पर्दे के पीछे ही रहता है। प्रत्यक्ष आने की कोई सत्ता उसे नहीं होती।
अपने वर्तमान रूप में उपन्यास पश्चिमी साहित्य की देन कही जायेगी। वैसे हमारे प्राचीन संस्कृत, अपभ्रंश साहित्य में कथा-कहानियाँ मिलती हैं, लेकिन आधुनिक कथा-साहित्य का रूप रंग पश्चिम के इसी साहित्य से पूर्णत: प्रभावित है, प्राचीन कथा साहित्य की टेकनीक से नहीं। आज उपन्यास अंग्रेजी (Novel) शब्द के पर्याय में व्यवहृत होता है। उपन्यास की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए क्लेरारीव ने जो विचार व्यक्त किये हैं, वे काफी महत्वपूर्ण हैं-उपन्यास यथार्थ जीवन और व्यवहार का तथा उस युग का जिसमें वह निर्मित हुआ एक चित्र है। उन्नत और उदात्त भाषा में रोमान्स उन सबका वर्णन करता है जो न कभी घटित हुए है और न जिनके घटित होने की संभावना है। उपन्यास उन परिचित वस्तुओं का वर्णन करता है, जो प्रतिदिन हमारे सामने घटित होती हैं, जो हमारे या मित्रों के अनुभव की हैं। उपन्यास की परिपूर्णता इसी में है कि वह हरेक दृश्य का वर्णन ऐसे सहज सरल रूप में करे कि वह पूरी तरह संभाव्य हो उठे और हमें (कम से कम उपन्यास पढ़ते समय) यथार्थ की प्रतीति या भ्रम होने लगे। हम सोचने लगे कि उपन्यास के पात्रों के सुख-दु:ख हमारे हैं।' इसीलिए उपन्यास यथार्थ जीवन का काल्पनिक चित्र