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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
ऐसी अभिव्यक्ति मान सकते हैं, जो अनिवार्यतः लेखक की मनोवैज्ञानिक विशिष्टताओं को उद्भाषित करती है और अन्ततः विषय और लक्ष्य को वाणी देती है।' गद्य के तीन कार्य माने गये हैं, जिनका सम्बन्ध बुद्धि, कल्पना और संवेदना से है। ये तीनों ही भाषा-शैली के अंग हैं। भाषा और शैली की सार्थकता यही है कि हमारे विचार हमारी अनुभूति बन सके अथवा कल्पना पाठकों में जागृत हो सके और दोनों का प्रमाण संतुलित रहे। साहित्यकार जीवन की कुरूपता से समझौता नहीं करता। वह उसे सुंदर में बदलने की चेष्टा करता है। यह उपयोगितावादी दृष्टि है, परन्तु साहित्य यदि संस्कृति का वाहक है तो उसे यह सृष्टि लेकर चलना ही पड़ता है। द्विवेदी जी के शब्दों में 'साहित्य के उपासक अपने पैर के नीचे की मिट्टी की उपेक्षा नहीं कर सकते। हम सारे बाह्य जगत् को असुंदर छोड़कर सौंदर्य की सृष्टि नहीं कर सकते। सुंदरता सामंजस्य का नाम है। क्रोचे की भांति डा. द्विवेदी जी साहित्य के मानसी सौंदर्य बोध को मात्र अभिव्यंजना नहीं मान सकते। वे उसे लोक-मंगल में प्रतिफलित देखना चाहते हैं। उनका ख्याल है कि साहित्य की साधना तब तक बन्ध्या रहेगी, जब तक हम पाठकों में ऐसी अदमनीय आकांक्षा जाग्रत न कर दें, जो सारे मानव-समाज को भीतर से और बाहर से सुंदर तथा सम्मान-योग्य देखने के लिए सदा व्याकुल रहे। अतः साहित्य की सार्थकता या लोक कल्याण की प्रवृत्ति गद्य के द्वारा स्पष्ट अभिव्यक्त हो पाती है। उपन्यास, कहानी, नाटक या निबंध में साहित्यकार अपने भावों व विचारों को सुस्पष्ट रूप से सशक्त भाषा शैली के माध्यम से पाठक तक पहुँचा पाता है।
आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य के अंतर्गत प्राप्त उपन्यास साहित्य में तथा आधुनिक हिन्दी उपन्यास साहित्य में विषय वस्तु एवं उद्देश्य के दृष्टिकोण से काफी अन्तर दृष्टिगत होता है, लेकिन टेकनीक की दृष्टि से इन उपन्यासों पर आधुनिक शैली का प्रभाव अवश्य है, या यों कहिए कि विषय वस्तु से सर्वथा भिन्न ये उपन्यास चरित्र-चित्रण, संवाद, वातावरण, वर्णनात्मकता, भाषा आदि दृष्टिओं से आधुनिक परिवेश अवश्य ग्रहण किये रहते हैं। अतः इनके भीतर हमें इन सभी तत्त्वों का परीक्षण-निरीक्षण करना होगा, ताकि निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सके कि प्राचीन जैन ग्रन्थों से प्रसिद्ध कथावस्तु या काल्पनिक धार्मिक विषय वस्तु ग्रहण करके लिखे उपन्यासों में और सब तत्त्व विद्यमान हैं 1. Lane Cooper-'The Art of the writer' : Introduction by Wiltelm
Walkernage, p. 10. 2. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी-अशोक के फूल, पृ. 181. 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी-अशोक के फूल, पृ० 129.