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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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शेर- क्या भाइयों में मुहब्बत और वफादारी,
क्या यारों में मुहब्बत और यारीआज सब एकदम जाती रही दुनिया से क्या, शरारत, मक्र, दगा, धोखा, फेज, रिया यकायक तमाम ख्ये जमीन पर छा गई; क्या दया व धर्म का,
जमाना पलट गया, रहम व इंसाफ का तख्ता उलट गया।" दुःखी, निराश भविष्यदत्त अकेला आगे बढ़ता हुआ तिलकपुर पट्टन पहुँचता है, जहाँ समृद्धि ही समृद्धि दिखाई पड़ती है। प्रथम मंदिर देखकर भविष्यदत्त वहां जाकर भगवान महावीर की मूर्ति के चरणों में गिरकर प्रार्थना करता है(चाल) इन दिनों जोशे जनू है तेरे दिवाने की,
अय महावीर जमाने का दिनकर तू है, सारे दुखियों के लिए एक दिवाकर तू है, तूने पैगाम अहिंसा का सुनाया सबको
बस, जमाने का हितोपदेशी सरासर तू है। . इस प्रकार की शेरो-शायरी में ही नाटक के प्रायः सभी पात्र बातचीत करते हैं, जो कहीं-कहीं अस्वाभाविक अवश्य हैं। सती विजयासुन्दरी नाटक :
'कमल श्री' नाटक की तरह इसमें भी प्राचीन कथावस्तु को उपदेशात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। नाटककार के शब्दों में 'इसमें शील धर्म की महिमा दिखाई गई है कि किस प्रकार एक गरीब लकड़हारे ने शीलव्रत का पालने करके राजा की पदवी को प्राप्त किया तथा सती विजयासुन्दरी से अपने पति के खोये हुए राज्य को किस प्रकार प्राप्त किया और अपने पुत्र जीवंधर को किस प्रकार राजगद्दी पर बैठाया। 'इस नाटक में भी कव्वाली, शेर और गजल में ही पूरे-पूरे संवाद चलते हैं, जो कहीं-कहीं चुभते हैं। वैसे भाषा उर्दू प्रधान होने से मिठास काफी है। कहीं-कहीं तो दुनियादारी, धर्म-कर्म, की बातों को अच्छी तरह से चर्चित किया गया है। राजा सत्यंधर की सुशील गुणवान रानी विजयासुंदरी कहती है
धार्मिक राजा है जो और धर्म का अवतार है, धर्म पर चलता है, जो तजकर विषय को, काम को। अपने सुख के वास्ते मन छोड़िये इस राज को, सोच लीजियेगा जरा इस काम के अंजाम को। (पृ. 30)