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आधुनिक हिन्दी - जैन- काव्य का कला - सौष्ठव
दृष्टि से वह आज भी उतनी ही नयी, उपयोगी और प्रेरणादायक है, जितनी कभी अतीत काल में रही होगी । काव्य- भाषा में मुहावरों का प्रयोग भी यत्र-तत्र हुआ है, जिससे शैली में जीवन्तता आ गई है जैसे- ' होता दगा किसका सगा', 'विनाश के समय विपरीत बुद्धि' आदि ।
उपर्युक्त उपदेशात्मक काव्य में कला पक्ष की बारीकियाँ प्रायः कम दीख पड़ती है। क्योंकि कवि का प्रमुख उद्देश्य आंतरिक अनुभूति के कलात्मक चित्रण का न होकर जैन दर्शन के सामान्य तत्वों व महत्व को प्रतिष्ठित करने का प्रतीत होता है और सरल व सुबोध भाषा - शैली के द्वारा अपने उद्देश्य की परिपूर्ति चाहते हैं।
आधुनिक हिन्दी - जैन मुक्तक काव्य रचनाओं में श्रीमती रमारानी जैन द्वारा संपादित 'आधुनिक जैन कवि' में विविध धाराओं की भिन्न-भिन्न कविताएँ संकलित हैं, जिनकी भाषा-शैली विषयानुसार भिन्न-भिन्न है। संकलन के अतिरिक्त महत्वपूर्ण जैन पत्रिका 'अनेकान्त' में भी हिन्दी - जैन कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं। आधुनिक युग के प्रारंभिक काल के कवियों की भाषा प्रायः सरल है। आध्यात्मिक हेतु प्रधान कविता होने से भाषा में चित्रात्मकता, प्रतीकात्मकता तथा शैली में वक्रता नहीं मिलती। किंतु 'सीकर' 'हिल्लोल' व उर्मिगीतों में गीतकारों की स्वानुभूतियों का मार्मिक चित्रण होने से भाषा में माधुर्य, कोमलता व तीव्रता प्राप्त होती है। 'युग-प्रवाह' के कवियों की भाषा प्रगतिवादी कवियों की भांति सुधार व सहानुभूति तथा क्रान्ति की भावना से युक्त है। अत: उनकी शैली में कहीं-कहीं व्यंग्य, तीखापन, करुणा व वेदना का स्वर विशेष रूप से उभरा है। शैली में प्रसादिकता व ओजस्विता दोनों गुणों का निर्वाह हुआ है। तीनों प्रकार के काव्यों की भाषा-शैलियों के कुछेक दृष्टान्त देखिए
(1) 'युगवीर' के काव्य 'मीन-संवाद' में 'मीन' के प्रतीक द्वारा मनुष्य की हिंसा - वृत्ति व कठोर कार्य की भर्त्सना की गई है
रक्षा करे वीर दुर्बलों की, निःशस्त्र पर शस्त्र नहीं उठाते, बातें सभी झूठ लगी मुझे थी, विरुद्ध ये दृश्य यहाँ दिखाये। इसलिए चाहिए कि
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'है कोई अवतार नया,
महावीर के सदृश्य जगत में, फैलाये सर्वत्र दया ।
श्री कपूरचन्द्र जैन : ‘इन्दु' - काव्य की भूमिका, पृ० 7.
( अज
ज - सम्बोधन )