________________
412
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
असमर्थता, नैराश्य, दृढ़ता एवं त्याग के मनोभावों को कवि ने शब्द-चित्रों में अंकित किया है-एक चित्र देखिए
कल-कल छल-छल सरिता के स्वर, संकेत शब्द थे बोल रहे।
आँखों में पहले तो छाये, धीरे-से उर में लीन हुए।
नेमिचन्द्र जी के विचार से-'भाव और भाषा की दृष्टि से यह काव्य साधारण प्रतीत होता है। लाक्षणिकता और मूर्तिमत्ता का भाषा में पूर्णतया अभाव है। हाँ, भावों की खोज अवश्य गहरी है।
'राजुल' व 'विराग' खंड काव्य में भाषा का माधुर्य एवं भावानुरूप स्वरूप लक्षित होता है, तो अन्य आधुनिक हिन्दी जैन खंड काव्यों में भाषा की सरलता या अत्यन्त सीधा-सादा रूप भी दिखाई पड़ता है, जैसे-भंवर लाल शेठी के 'अंजनापवनंजय', भगवत स्वरूप जैन के 'सत्य-अहिंसा का खून' काव्य में। 'अंजना-पवनंजय' काव्य में कवि ने कला पक्ष को कमजोर कर दिया है। भाषा-शैली को मार्मिक और अलंकारों से सुसज्ज करने की ओर प्रायः कवि का ध्यान कम गया है। अतः गद्य का सा रूप भी कहीं-कहीं आ जाता है। वैसे जैन-समाज में इसके प्रचार-प्रसार हेतु कवि ने भाषा का स्वरूप सरल ही चाहा है। कहीं-कहीं काव्य-पंक्तियों में बार-बार क्रिया का प्रयोग भी किया गया है, यथा
मन था या अनघड़ पत्थर था, लोहा था या बज्जर था। प्रेम-भिखारिन परम-सुंदरी, नारी को जहाँ न स्थल था। यत्र-तत्र भाषा-शैली में रोचकता भी छाई है जैसेआनंद-मंगल छाया जग में, हुआ प्रशंसित शील-सिंगार। सती अंजना का अति सुंदर, छाया जग में जय-जयकार॥
'सत्य-अहिंसा का खून' जैसे छोटे खण्ड काव्य में भाषा की स्वाभाविकता विशेष लक्षित होती है। बोल-चाल के उर्दू शब्दों का प्रयोग कवि ने त्याज्य नहीं माना है जैसे___ अजब-गजब, मुहताज, शोहरत, बयान, माज़रा, अक्ल, गोया, खामोश आदि। वैसे ही संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी कवि ने किया है, उदाहरण के लिए-क्षेत्र, कुशल, स्वस्तिका, पर्यक, स्फटिक, स्वस्तिमती, श्रीमुख आदि।
'स्व. भगवत जी की यह रचना यद्यपि भाषा और साहित्य की दृष्टि से उनकी प्रारंभिक और शैशवावस्था की अनुमान की जाती है, किन्तु भावों की 1. डा० नेमिचन्द्र जैन : हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-द्वितीय भाग, पृ॰ 28.