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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
उदाहरण अलंकार का एक नमूना देखिए
माया बंधन मनुज को जकरावत जल जोर। __कठिन काष्ट छेदत अली, पंकज सकत न तोर॥ 3-463 नाम परिनगणन अलंकार :
कवि ने जहाँ सुंदर से सुंदर उत्प्रेक्षा, उपमा व दृष्टान्त अलंकारों का उचित उपयोग अपने भावों को स्पष्ट करने के लिए किया है, वहाँ, ज्ञात खण्ड वन के-जहाँ भगवान महावीर दीक्षा के लिए आते हैं-उपवन, उद्यान की शोभा के वर्णन में एक ही साथ सभी प्रकार के पशु-पंछी और फल-फूल, वृक्षों के वर्णन के साथ उद्यान की शोभा का वर्णन परिगणन वृत्ति से करते हैं, यथा
नारियेल वट वृक्ष विशाला, जमरूख, सीताफल, तरु ताला। नारंगी दाडिम द्राक्षादि, पुंगि उतंगि लविंग लतादि॥ चंदन, एलची, केतकी केरे, चम्पक, निम्बू, खजूरी घनेरे। आमल जाम्बु किंशुक वृक्षा, निज शोभा से खींचत लक्षा॥ सब मिल ज्ञातखंड उपवन में, आई सवारी गाढ़ वृक्षन में। अर्जुन केल-कदंब तमाला, सीसम साग अशोक, रसाला॥ 432
इसी प्रकार नववधू यशोदा की साज सज्जा के वर्णन में, यशोदा के पिता द्वारा दी गई पहेरावनी-भेंट की सूची में भी रत्न, माणिक, वस्त्र-आभूषण, हाथी-घोडों की नामावलि कवि ने प्रस्तुत की है। वैसे यशोदा की सुंदरता का आलंकारिक-वर्णन किया है
नवसर हार कंठ सोहे कस, बदन चंद सम्मुख तारा जस। अलतायुक्त रक्त चरनों की, अंगुलि नख द्युति ज्यों चरननों की186।।
एक ही चौपाई में उपमा, उत्प्रेक्षा व रूपक अलंकार में बालक वर्धमान के रूप-सौंदर्य का कवि मनोहारी वर्णन करते हैं
नीलकंबु सम सुहत शरीरा, मुख-दुति मानहु उज्ज्वल हीरा। भरित कपोल गोल अरुणारे, कंठ सुललिल कंबु अनुसारे। पूर्ण चन्द्र आनन छवि छाये, देखत काम कोटि लजवाये। नयन पद्म शुभ प्रकाशवन्ता, कुंचित केश कृष्ण सोहन्ता॥
उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कवि ने अलंकारों का (उचित) समीचीन उपयोग भावों की सरलता व ग्राह्यता के लिए किया है, न कि अपनी वाक् विदग्धता या पांडित-प्रदर्शन के लिए किया है। क्योंकि कवि का प्रमुख प्रयोजन तो भगवान महावीर का चरित सरल, सुन्दर प्रवाहमयी शैली