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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
अधी कहेंगे किस निन्द्य जी को ? कषाय, क्रोधादिक-युक्त जो कि हो। 'कुबुद्धि' लोभीजन कौन है शुभे! सदैव जो द्रव्य लहे अधर्म की।'
इसी प्रकार त्रिशला, सिद्धार्थ के वार्तालाप में भी इसी सरल-रोचक भाषा का दर्शन होता है। त्रिशला के सौंदर्य वर्णन व राजा सिद्धार्थ की महानता के वर्णन में सरल एवं कर्ण प्रिय शब्दों का प्रयोग ही प्राप्त हैं-जैसे-रानी त्रिशला के लिए कवि कहते हैंसरोज-सा वकत्र, सुनेत्र मीन से,
सिवार-से केश, सुकंठ कम्बु-सा। उरोज ज्यों कोक, सुनाभि भोर-सी,
___ तरंगिता थी त्रिशला-तरंगिणी। सुनी सुधामंडित माधुरी-धुरी,
___अभी सुवाणी त्रिशला मुखाब्ज से। पिकी कुहू रोदन में रता हुई,
प्रलम्ब भू में परिवादिनी बनी। त्रिशला के सौंदर्य वर्णन में भाषा का सौंदर्य दृष्टव्य है
नितंब संपीडित पाद-युग्म में, मनोहरा मेचक नुपुरावली। विराजती थी त्रिशला पदाब्ज में, सरोष भू की जिस भांति भंगिमा।
'वर्द्धमान' में जहाँ सिद्धार्थ की सभा तथा महत्ता का वर्णन करते हैं, वहाँ भाषा सहज सरल है
'सुवर्णा-वर्णा, ललिता, मनोहरा, सभा लसी यों पद-ब्यास-शालिनी। विरंचि सिद्धार्थ-युता लखी गई, शरीरिणी ज्यों अपरा सरस्वती॥ सदा द्विजावास तथैव निर्मल, विशाल थे जीवन धाम राज्य के। तड़ाग-से शोभित पद्मयुक्त वे, नरेश तृष्णा हरते अधीन की॥ परन्तु जो सर्वदा सर्वदा उन्हें, विचारते थे वह यों निराश थे।
न पीठ पाई अरि-वृन्द ने कभी, न वक्ष देखा परनारि ने तथा॥ 1. अनूप शर्मा-वर्धमान-सर्ग-6, पृ॰ 36. 2. अनूप शर्मा-वर्धमान-सर्ग 1, पृ. 55, 81. 3. द्रष्टव्य-अनूप शर्मा-वर्धमान-सर्ग-6, पृ० 61, 105. 4. द्रष्टव्य-अनूप शर्मा-वर्धमान-सर्ग-1, पृ. 43. 5. द्रष्टव्य-अनूप शर्मा-वर्धमान-सर्ग-1, पृ. 47.