________________
आधुनिक हिन्दी - जैन
- गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
-
361
है। आपने विशाल मात्रा में अनुसंधानात्मक निबंध लिखे हैं, जिनमें ' बारकूट ' 'वेणूक', क्या वादिभसिंह अकलंकदेव के समकालीन हैं, वीरमार्तण्ड चामुण्डराय, जैन वीर अंकेय, हुमुंच, तोलव के जैन पालेयगार, सातारराजा निदराय, कारकल का जैन भैरव-राजवंश, दान - चिंतामणि आदि महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण के जैन राजवंश धनी - दानी श्रावकों, न्यायाचार्यों, कवियों आदि विषयों पर आपके कई अन्वेषणात्मक विद्वतापूर्ण निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। यद्यपि इनमें कहीं-कहीं ऐतिहासिक प्रमाणों की कमी है, तथापि हिन्दी जैन गद्य के विकास में इन निबंधों का योगदान महत्वपूर्ण है। आपकी शैली समास शैली है, जो थोड़े में बहुत कुछ कर देने में समर्थ है। गंभीर विचारों की अभिव्यक्ति आप सार्थक शब्दों में कर सकते हैं।
बाबू अयोध्याप्रसाद गोयलीय बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न साहित्यकार हैं। कवि, संस्मरणकार, कथाकार के अतिरिक्त निबंधकार का रूप भी उल्लेखनीय हैं। कविता, कथा, संस्मरण, तथा निबंध सभी विधाओं पर आपने साधिकार कलम चलाई है और उनसे जो निःसृत हुआ, उससे अवश्य जैन समाज व साहित्य को कल्याणप्रद व रागात्मक चीज प्राप्त हुई है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। 'राजपूताने के जैन वीर' 'मौर्य साम्राज्य के जैन वीर' और 'आर्यकालीन भारत' के ग्रन्थाकार संकलन महत्वपूर्ण हैं।
इतिहास और पुरातत्ववेत्ता डा० हीरालाल जैन के भी अन्वेषणात्मक एवं दार्शनिक निबंध प्रकाशित हुए हैं। कई ग्रंथों की भूमिकाएं आपने लिखी हैं, जो इतिहास के निर्माण में विशिष्ट स्थान रखती हैं। जैन इतिहास की पूर्व पीठिका' तो शोधात्मक अपूर्व वस्तु है । इस छोटी-सी रचना में गागर में सागर भर देने वाली कहावत चरितार्थ हुई है। आपकी रचना - शैली में धारावाहिकता पाई जाती है। भाषा सुव्यवस्थित और परिमार्जित है। थोड़े शब्दों में अधिक कहने की कला में आप प्रवीण हैं। महाधवल, धवल सम्बंधी आपके परिचयात्मक निबंध भी महत्वपूर्ण है।' श्रवण बेलगोल के जैन शिलालेखों की प्रस्तावना में आपने अनेक राजाओं, यतिओं और श्रावकों पर संशोधनात्मक लेख लिखे हैं।
डॉ॰ नेमिचन्द्र शास्त्री ने 'हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन' दो भागों में अपभ्रंश, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास गवेषणात्मक शैली व ललित साहित्यिक भाषा में लिखा है। इसके उपरांत जैन पत्र-पत्रिकाओं में आपके कई दार्शनिक निबंध प्रकाशित हुए हैं। आपका तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (तीन भाग) ग्रन्थ काफी महत्वपूर्ण है, जिनमें आपका सूक्ष्म गवेषणात्मक
1. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 127.