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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
धर्म व दर्शन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अत्यन्त शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाने पड़े थे, अतः भविष्य की पीढ़ी को सुगमता से ज्ञान प्राप्ति हो सके, इस उद्देश्य से जगह-जगह पाठशालाएं स्थापित की। आज के हमारे समाज में जो अमीर-गरीब के बीच अन्याय, भेदभाव, धोखेबाजी, पूर्वग्रह आदि वर्तमान है, उनका चित्रण आपने 'कुंबडीवाले' प्रसंग में अच्छी तरह किया है। गरीब सब्जी बेचनेवाली के पास भी ईमानदारी व न्याय नामक चीज है, लेकिन समाज के अगुवा कहलाने वाले शेठ जी व धनिक स्त्री को न लाज-शरम है, न पाप का भय है और न ही गरीबों की इज्जत संभालने की भावना। 'धनिक मनुष्य अपने पैसों से सैकड़ों पाप छिपा लेते हैं, लेकिन एक निर्धन सुई की नोक के बराबर भी पाप नहीं छिपा पाता, उसे अपने पाप का फल भुगतना ही पड़ता है। यह कैसा अन्याय। हमारे समाज में यही विषमता है। समाज तंत्र में जब तक यह विषवेल रहेगी तब तक उन्नति की आशा नहींवत् होगी। इस तथ्य को सुंदर रीति से व्यक्त करते हुए लिखते हैं-पाप चाहे बड़ा मनुष्य करे या छोटा, पाप तो पाप ही रहेगा। उसका दण्ड दोनों को समान ही मिलना चाहिए। ऐसा न होने से ही संसार में आज पंचायती सत्ता का लोप हो गया है। बड़े आदमी चाहे जो करें, उनके दोष को छिपाने की चेष्टा की जाती है और गरीबों को पूरा दण्ड दिया जाता है, यह क्या न्याय है ? देखो, बड़ा वही कहलाता है, जो समदर्शी है। सूर्य की रोशनी चाहे दरिद्र हो चाहे अमीर, दोनों के घरों पर समान रूप से पड़ती है। समाज का सच्चा रूप इस ग्रंथ के पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित है।
आत्मकथा में जितने भी पात्रों का परिचय दिया गया है, जिनसे संसर्ग, मुलाकात या थोड़ा-बहुत जिनके साथ में काल-यापन किया है, उन सभी का इतना स्पष्ट एवं सुरेख चित्रण किया गया है कि उनकी जीती-जागती तस्वीर हमारे सामने आ जाती है। उपन्यास शैली से भी बढ़कर रोचक चरित्र-चित्रण किया गया है। चिरोंजी बाई, स्व. गोपालदास बरैया, अर्जुनदास सेठी, रामदास भाऊ, पाण्डे आदि का चित्रात्मक परिचय दिया है। आज से 50, 60 वर्ष पूर्व के समाज की स्थिति, रहन-सहन, रीति-रिवाज, जनता की मनोवृत्ति, अतिथिसत्कार, हार्दिकता, धार्मिक स्थलों की स्थिति, धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं का निर्वाह, शिक्षा की पद्धति, शिक्षार्थी का जीवन, आदि विषयों की जानकारी हमें इस ग्रंथ से आसानी से मिल जाती है। यह ग्रन्थ इतिहास की सच्चाई व सूक्ष्मता से पूर्ण होने से जीवनी के आनंद के साथ समाज की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों का ज्ञान भी देती है। सच्चे व्रत के विषय में आपने कई जगह
1. वर्णी जी : मेरी जीवन गाथा, पृ० 105.