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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रकाशित न करवाने से बहुत-सी उत्तम चीजें प्रकाश में आने से रह गई। सीधी-सादी शैली में आपके पुष्ट विचारों को अभिव्यक्ति मिली है।
__पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री दार्शनिक, आचारात्मक एवं ऐतिहासिक निबंध लिखने में सिद्धहस्त हैं। 'न्यायकुमुद चन्दोदय' की प्रस्तावना जो कि दार्शनिक विकासक्रम का ज्ञान भंडार है, जैन-साहित्य की अमूल्य निधि है। स्थाद्वाद सप्तभंगी, अनेकान्तवाद की व्यापकता और चारित्र, शब्दनय, महावीर और उनकी विचारधारा आदि निबंध अपना विशेष स्थान रखते हैं। 'जैन-धर्म' जो अत्यन्त शिष्ट व संयत भाषा में लिखा गया दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन करता हुआ मौलिक ग्रंथ है। उसी प्रकार 'तत्वार्थ-सूत्र' पर भी दार्शनिक विवेचन ज्ञानवर्द्धक एवं प्रशंसनीय है। आपकी शैली आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी से काफी मिलती-जुलती है। दोनों में हम विचारों की गंभीरता के साथ सरल अभिव्यक्ति, अन्वेषणात्मक, चिन्तन व अनुभूतियों की स्पष्टता के दर्शन पाते हैं। ___पं० दलसुभाई मालवणीया जी ने दार्शनिक निबंधों का सृजन कर हिन्दी जैन साहित्य को समृद्ध बनाया है। जैनागम, जैन युग का प्रारंभ, जैन दार्शनिक साहित्य का सिंहावलोकन आदि आपके महत्वपूर्ण निबंध हैं। आप निरन्तर जैन साहित्य की सेवा में रत रहते हैं। जैन अपभ्रंश एवं प्राकृत साहित्य के आप जाने-माने विद्वान होने के साथ 'जैन साहित्य का बृहद इतिहास' के भी प्रधान संपादक के रूप में भी आपकी विद्वता तथा अध्ययनशीलता द्रष्टव्य है। प्राच्य विद्या व वास्तुकला के विषय में भी आपका गहरा ज्ञान है। जहाँ एक ओर दार्शनिक निबंधों का सृजन करते हैं, तो दूसरी ओर साहित्यिक व दार्शनिक ग्रंथों की तटस्थ आलोचना भी करते हैं। भगवान महावीर' में उनकी दार्शनिकता, ऐतिहासिकता एवं संशोधनात्मक दृष्टि बिंदुओं का संतुलन आकर्षक है। ___पं० दरबारीलाल न्यायाचार्य भी दार्शनिक निबंधकार है। 'न्याय दीपिका' की प्रस्तावना और आप्त परीक्षा की प्रस्तावना के अतिरिक्त अनेकान्तवाद, द्रव्य व्यवस्था पर आपके कई निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी शैली प्रारंभ में शब्द बहुला थी, लेकिन उत्तरोत्तर विकसित होती जा रही है।
पं० फूलचन्द जी 'सिद्धान्त शास्त्री' को विद्वान् दार्शनिक निबंधकार का सम्मान दिया जाता है। तत्वार्थ सुंदर जैसे शुद्ध दार्शनिक विषय पर भी सुंदर निबंध लिखे हैं। इसी तरह जैन दर्शन के कर्म-सिद्धान्त के तो आप मर्मज्ञ हैं व एतद्-विषयक निबंध आधुनिक शैली में 'ज्ञानोदय' पत्र में प्रकाशित हुए हैं।
प्रो. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य के दार्शनिक निबंध जैन साहित्य के लिए