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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
कथानक :
महावीर की कथावस्तु अत्यन्त प्राचीन व प्रसिद्ध है। महावीर की जीवनी को इस नाटक में कथोपकथन के माध्यम से व्यक्त किया गया है। जन्म से ही वर्धमान असाधारण दीखते थे। बचपन में साथी बालक भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाते थे। उनकी अद्भुत अहिंसक वीरता व अलौकिक शक्ति, तेज व कार्यों के कारण उनके माता-पिता ने भी उन्हें तीर्थंकर के रूप में स्वीकार कर लिया था। कुमार के युवा होने पर विवाह की चिंता राजा-रानी को होने लगी, लेकिन वैरागी बेटा बराबर इन्कार करता रहा। माता-पिता के अधिकाधिक आग्रह से फिर आज्ञाकारी पुत्र ने आदेश के पालन करने हेतु विवाह करना स्वीकार किया। माता-पिता की मृत्यु के बाद अग्रज नंदिवर्द्धन से आज्ञा लेकर पत्नी यशोदा और पुत्री प्रियदर्शना को छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर ली, क्योंकि संसार के पदार्थों, भोग-वैभव राज्य लिप्सा से उन्हें कब से अरुचि हो गई थी। अतः समाज में स्वार्थ-परायणता, हिंसा, असत्य के स्थान पर अहिंसा, मानवता
और सत्य का प्रचार करने के लिए वे निकल पड़े। प्रारंभ में बारह वर्ष उग्र तपश्चर्या, मनोनिग्रह एवं चिंतन-मनन में, कष्ट-संकटों को सहते हुए गुजारे। बाद में 'केवल ज्ञान' को प्राप्त कर शिष्यों का समुदाय बनाकर उपदेश देना प्रारम्भ किया। उनके शिष्यों में मेखलीपुत्र गोशाला एवं उनके जामाता जामालि ने महावीर का घोर विरोध किया, निंदा की लेकिन अंत में दोनों को पश्चाताप
और कष्ट की मौत मरना पड़ा। महावीर ने तो उन दोनों के प्रति प्रेम और करुणापूर्ण व्यवहार रखा था। गौतम इन्द्रभूति को प्रथम गणधर (शिष्य) पद पर स्थापित कर अन्य प्रमुख आचार्यों को गणधर बनाकर जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। अन्त में 72 वर्ष की आयु में महावीर पावापुरी पहुँचे और वहाँ दिव्य उपदेश देते हुए कार्तिक की अमावास्या को समाधिमरण लेकर 'मोक्ष' प्राप्त किया। उनकी मोक्ष प्राप्ति के मंगल अवसर को मनाने के लिए दीप जलाने की प्रथा प्रारंभ हुई है ऐसा माना जाता है। हिंसा-अज्ञान का अंधकार दूर कर जैसे अहिंसात्मक ज्ञान की ज्योति प्रभु महावीर ने फैलाई, इसके प्रतीक रूप में दीपक जलाकर उजाला प्रकट करने का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
इस नाटक का कथानक जैन आगम के आधार पर से लिया गया है और नाटककार श्वेतांबर मान्यता में विश्वास करते हुए लगते हैं, क्योंकि दिगम्बर मान्यता में महावीर को अविवाहित और साधनाकाल में दिगम्बरावस्था में ही स्वीकारा गया है। लेखक ने इसको विशेषकर अभिनय के लिए लिखा है और अपने उद्देश्य में वे सफल भी हुए हैं। क्योंकि सभी घटनाएं दृश्य हैं और सूक्ष्म