________________
356
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
में प्रवाह, विचारात्मकता एवं सुबोधात्मकता अवश्य निहित है। आधुनिक काल को गद्य युग का श्रेय दिलवाने में निबंध-साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान कहा जाता है।
आधुनिक युग में गद्य को साहित्य की कसौटी मान ली जाय, तो निबंध को गद्य की कसौटी कहा जा सकता है। क्योंकि साहित्य की इस विधा में सर्वाधिक सुगठन, विचारों व शैली की परिपक्वता, चुस्तता, प्रवाह आदि की आवश्यकता रहती है। आधुनिक निबंध-साहित्य संस्कृत के निबंध या प्रबंध से सर्वथा भिन्न रूप से स्वीकृत है, एवं पश्चात्ताप साहित्य की देन कहा जायेगा क्योंकि यह आज लेटिन के 'एग्बीजीयर' (निश्चिततापूर्वक परीक्षण करना) से निकले फ्रेन्च के 'एसाइ' और अंग्रेजी के 'ऐसे' (Essay) का पर्याय हो गया है, जिनका शाब्दिक अर्थ प्रयत्न, प्रयोग या परीक्षण होता है और प्रयोग की दृष्टि से जो लघु अथवा मर्यादित दीर्घ कलेवर की उस अनवस्थित गद्य रचना के लिए प्रयुक्त होता है, जिसमें निबन्धकार आत्मीयता, वैयक्तितता या निर्वाधिकता के साथ किसी एक विषय या उसके किन्हीं अंशों या प्रसंगों पर अपनी निजी भाषा शैली में भाव या विचार प्रकट करता है। यहाँ हमारा प्रयोजन निबंध की परिभाषा, तत्व या विकास के सन्दर्भ में चर्चा करने का कतिपय रहता नहीं है, क्योंकि निबंध को एक परिभाषा में बांधना अत्यन्त कठिन है। भारतीय व पाश्चात्य काव्य शास्त्रकारों ने, साहित्यकारों ने इसके संदर्भ में भिन्न-भिन्न पहलुओं को लेकर विस्तार से विचार किया है। एक बात निबंध के सम्बंध में निश्चित है कि वह सर्वथा व्यक्तिगत एवं स्वानुभूति मूलक विधा है। अतः आचार्य शुक्ल ठीक ही कहते हैं-'निबंध-लेखन जिधर चलता है, उधर अपनी संपूर्ण मानसिक सत्ता अर्थात् बुद्धि और भावात्मक हृदय साथ लिए रहता है।' और जोन्सन महोदय भी इसी कारण 'निबंध' को मन की उच्छृखल गति-स्थिति की साहित्यिक अभिव्यक्ति' कहते हैं। (A loose sally of mind and irregular indigested piece of literature not a regular and orderly performance of literature) निबंध आस्तिक अभिव्यक्ति होने पर भी उसमें विचारों की सुस्तता, भाषा का गठन, सीमित विस्तार, स्वच्छन्दता में भी नियमितता एवं हार्दिकता के साथ मौलिक निजीपन अपेक्षित रहता है। इसी के परिणाम स्वरूप ही प्रत्येक निबंधकार की शैली भिन्न-भिन्न होती है और शैली पर से ही निबंधकार की प्रतिभा, योग्यता व मौलिकता का परिचय उपलब्ध होता है। विचारों की गंभीरता के साथ विषय के प्रतिपादन की शैली निबंध का प्राणतत्व
1. साहित्य कोश : पृ. 408.