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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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होती है, यह मनोवती की कथा द्वारा व्यक्त किया हैं। पूरी कथावस्तु में आदर्शात्मक पक्ष पर विशेष जोर दिया गया है। चरित्र-चित्रण : पात्र :
इस उपन्यास में प्राचीन पात्र मनोवती और बुद्धिसेन हैं। अन्य सब पात्र गौण हैं। मनोवती इसकी नायिका हैं। इसका चित्रण एक आदर्श भारतीय ललना के रूप में हुआ है। धर्म और आदर्श में उसकी अनन्य श्रद्धा है। अपनी प्रखर बुद्धिमत्ता के कारण वह आठ महीने में ही धर्म शिक्षा में पारंगत हो जाती है
और उसकी धर्म-परायणता का ज्वलंत उदाहरण तब मिलता है, जब गजमुक्ता न पाने पर तीन दिन का उपवास करती रह जाती है। नारी सुलभ संकोच की भावना उसमें व्याप्त है। पतिपरायणता व भारतीय आदर्श से ओत-प्रोत मनोवती दुःख में भी पति का साथ न छोड़कर उसे धैर्य बँधाती है और प्रसन्न रहने की कोशिश करती है। पति दूसरी शादी करता है, तब भी बुरा नहीं मानती, पर पति के सुख का ही ख्याल करती है। जैन धर्म में अटल विश्वास रहते हुए वह सदैव पति को भी सदाचार और सत्कर्मों की ओर प्रेरित करती है। मनोवती के चरित्र-चित्रण में लेखक को काफी सफलता मिली है। त्याग और क्षमा धर्म का भी मनोवती परिचय देती है, जब बुद्धिसेन स्वयं अपने माता-पिता व भाई-भाभियों से बुरा व्यवहार करता है, लेकिन मनोवती सम्मानपूर्वक उन्हें अपने घर बुलाती है और क्षमा माँगकर सबसे प्रेम से मिलती है।
बुद्धिसेन को इस उपन्यास का नायक कहा जा सकता है, लेकिन जितनी कुशलता और सफलता से मनोवती का चित्रण लेखक कर पाए हैं, उतना बुद्धिसेन का नहीं हो पाया है। उसका पात्र मनोवती की तरह उभरता नहीं है। मनोवती के तेजस्वी, उदात्त, धर्मपरायण चरित्र के सामने बुद्धिसेन का पात्र कुछ फीका-सा लगता है। आरंभ में वह सदाचारी के रूप में आता है, लेकिन पीछे 'धनता पाई काहि मद नाहिं' कहावत के अनुसार धन के कारण क्रूर और कृतघ्नी बन जाता है। न केवल परिवार के प्रति-बल्कि मनोवती के प्रति भी उसका आचरण बदल जाता है। मनोवती के उपकारों को विस्मृत कर तुरन्त दूसरी शादी कर लेता है। एक सदाचारी पत्नी को चाहने वाले पुरुष के चरित्र में क्रमशः परिवर्तन आना चाहिए। लेकिन लेखक ने त्वरित गति से परिवर्तन दिखलाया है, अत: अस्वाभाविकता आ गई है। अन्य पात्रों का चरित्र-चित्रण तो नहीं हो पाया है। मनोवती के पात्र के सामने सभी पात्र दब गए हैं, जिससे उपन्यास के विकास व औपन्यासिक कला में बाधा पहुँचती है।
उपन्यास की शैली में प्रभावोत्पादकता की कमी है। मनोवती की