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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
साहित्य कला की दृष्टि से हमारी कहानियाँ ऊँचे दर्जे की नहीं कही जा सकती और इसलिए विद्वान् समाज में उनका मूल्य विशेष न आंका जाय तो इसका हमें खेद नहीं है, क्योंकि पहले तो यह हमारा बाल - प्रयास है और दूसरे हमारा उद्देश्य इसमें साहित्यपूर्ति के अतिरिक्त कुछ अधिक है। जैनों की अहिंसा और भीरुता के कारण भारत का पतन हुआ है, ऐसी मिथ्या धारणा व भ्रम सामान्य लोगों में जो फैला है, उसको गलत साबित करने के लिए जैन वीरों के चरित्र प्रकट करके अहिंसा तत्व की व्यवहारिकता स्पष्ट कर देना ही श्रेष्ठ है । उनको पढ़ने से पाठकों को जैन अहिंसा की सार्थकता और जैनों के वीर पुरुषों का परिचय विदित होगा और इसी बात में इस रचना का महत्व गर्भित है । '
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वीर पुरुषों की कथाओं का कथानक ऐतिहासिक आधार से ग्रहण किया गया है। इसमें लेखक ने अपनी कल्पना शक्ति से भी काम लिया है, लेकिन ये पूर्णतः कपोल कल्पित न होकर भाषा शैली, वर्णनों से प्रस्तुतीकरण में नवीनता अवश्य है। सभी की कथा वस्तु पात्र, प्रसंग के लिए प्राचीन ऐतिहासिक ग्रन्थ, शिलालेख, युनानी इतिहासकार आदि का संदर्भ दिया है, जिससे कथा की सत्यता के लिए टीका करने के लिए कोई प्रमाण नहीं रहता । हाँ, थोड़ी-बहुत नवीनता या विचित्रता लगे, लेकिन अप्रामाणिकता नहीं। जबकि देवेन्द्र प्रसाद जैन की 'ऐतिहासिक स्त्रियाँ' नामक कथा संग्रह में लेखक ने प्रचलित कथा वस्तु में जो कुछ नवीनता या परिवर्तन किया है, उसके लिए कोई आधार प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे पारंपरित कथावस्तु में कथा की भिन्नता के लिए तुरन्त विश्वास नहीं बैठता ।
(1 ) तीर्थंकर अरिष्टनेमि :
कहानी के प्रारंभ में युद्ध का सजीव सुंदर वर्णन है। भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई युवराज नेमिकुमार की विनोदप्रियता, जरासिन्धु के साथ किये गये युद्ध में उनकी वीरता, धीरता एवं शौर्य को देखकर श्रीकृष्ण भी सोच में पड़ गये व अपने भविष्य के लिए सशंक हो गये। बाद में भोजवंशीय राजा उग्रसेन की पुत्री राजमती से विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। बारात के समय नेमिनाथ के दिल में वैराग्य पैदा करने के लिए पशुओं को बाड़े में बंधवाकर उनका क्रन्दन, हाहाकार सुनकर नेमिकुमार संसार के प्रति उदासीन होकर सन्यस्त लेने के लिए उद्यत हो जायें ऐसा षड्यंत्र श्रीकृष्ण करते हैं। योजनानुसार होता भी ऐसा ही है । बारात के विवाह मण्डप जाने के रास्ते में मेहमानों के भोजनार्थ मारने के लिए बांधे गये पशुओं के करुण चीत्कार को सुनकर नेमिनाथ के हृदय में हिंसा में 1. कामता प्रसाद जैन : 'नवरत्न' प्रस्तावना, पृ० 12.