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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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वरुण-हः हः हः इतना भरोसा? पवन-नहीं, आत्म विश्वास। वरुण-इतना घमण्ड? पवन-नहीं, न्याय की ताकत। वरुण-यह ललकार? पवन-हां, अन्याय का प्रतिकार। वरुण-यह अरमान? पवन-नहीं, न्याय का सम्मान।'
इसी प्रकार पवन की माता केतुमती और अंजना की सरवी-दासी-वसंतमाला के संवाद में भी तीव्र आघात-प्रतिघात तथा ओज भरा पड़ा है-यथा
केतुमती-सेविका होकर सीखा रही हो मुझे? वसन्त-नहीं, न्याय की प्रार्थना कर रही हूँ, माता जी। केतुमती-मैं ऐसी प्रार्थना को ठोकर मारती हूँ। वसन्त-आप सच्चाई को ठोकर मार रही हैं। केतुमती-बन्द करो बकवास, याद रखो तुम सेविका हो। वसन्त-जानती हूँ, मगर अन्याय की सेविका नहीं मैं।
अंजना सम्बंधी सभी नाटकों में चरित्र-चित्रण की दृष्टि से वसन्त माला का चरित्र अधिक सहानुभूति पूर्ण और उदात्त हो पाया है। एक दासी होकर भी वह माता-पिता, पति-सास-ससुर सबसे अधिक अंजना के निकट रहकर सखी, दासी, बहन और माँ का कर्तव्य निस्वार्थ भाव से बजाती है। अन्याय का प्रतिकार करती हुई अंजना के कठोर दुःख व अत्याचार में वह हंसती हुई साथ देती है, बल्कि उसके दु:खों को हल्का से हल्का करने की निरन्तर कोशिश करती रहती है। अंजना का चरित्र भी पाठक की हमदर्दी व प्रेम जीत लेता है। वह प्रेम, सेवा एवं करुणा की साक्षात मूर्ति ही है। कदम-कदम पर दु:ख, अपमान और लांच्छन ही उसकी तकदीर में लिखे होने पर भी कर्मों का फल समझकर धैर्यपूर्वक शान्ति से सहती हुई पति-भक्ति में लीन-एकाग्र-सी रही है। वसन्तमाला की तरह पवनंजय का मित्र प्रहस्त भी सच्चा मित्र धर्म बजाता है निराशा, हताशा के समय सलाह, आश्वासन व धैर्य बंधाकर पवनंजय को स्वस्थ रखने की कोशिश करता है, तो अहंकार व अभिमान भरे उसके व्यवहार के समय योग्य मित्र की तरह वास्तविकता भी समझाता है। पवनंजय के प्रति पाठक का दिल कभी रोष का अनुभव करता है, लेकिन उसके गहरे पश्चाताप के बाद निर्मल व्यवहार से पुनः पाठक का दिल जीत लेता है। अन्य सभी पात्रों का भी अच्छा चरित्र-चित्रण किया गया है। 1. पद्मराज जैन-सती अंजना, पृ. 64. 2. वही-पृ. 73.