________________
आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
341
'अंजना' एवं कन्हैयालाल ने 'अंजनासुन्दरी' नाम रखा है। सुदर्शन जी का नाटक अधिक साहित्यिक व रोचक है, तो कन्हैयालाल जी ने विशेष मनोवैज्ञानिक बनाने की कोशिश की है। दोनों का लक्ष्य नारी के आदर्श चरित्र प्रस्तुत करने का है। दोनों में अंजना का करुण चरित्र-चित्रण हृदय द्रावक बन पड़ा है। कथावस्तु की रोचकता, संवादों की सूक्ष्मता, व्यंजनात्मकता तथा वातावरण की मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ दोनों नाटक अभिनेय हैं। 'अंजना-सुन्दरी' की कथा वस्तु में थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया गया है। मूल कथानक में अंजना अपनी सास को अंगूठी बताती है, लेकिन उसे विश्वास नहीं आता और महल से अंजना को निकाल देती है। इस बात को अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए अंगूठी के खो जाने की कल्पना कन्हैयालाल ने की है। लेकिन सुदर्शन ने इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिए ऐसी योजना की है कि पवन अपनी अंगूठी के नग के नीचे अपने हस्ताक्षरांकित एक कागज का टुकडा अवश्य रखता था, जो ईर्ष्यावश ललिता ने वह अंगूठी बदल डाली। अंजना को इस बात की जानकारी नहीं थी। अत: असली अंगूठी के अभाव में सास का संदेह करना स्वाभाविक प्रतीत हो। सुदर्शन जी के नाटक में संवादों की तीव्रता, पात्रों का चरित्र-चित्रण अधिक रोचक व स्वाभाविक हो पाया है। "प्रकृति के सुकोमल दृश्यों के सहारे मानवीय अंत:करण को खोलकर प्रत्यक्ष करा देने की कला सुदर्शन जी में है। इसलिए अंजना में प्रकृति के माधुर्य और सौन्दर्य का सम्बंध जीवन के साथ-साथ चित्रित किया गया है सुदर्शन जी के 'अंजना' नाटक में वाणी ही नहीं, हृदय बोलता हुआ दृष्टिगोचर होता है। सुखदा के विचारों का क्रम देखिए-'सुखदा-एक-एक कर दस वर्ष बीत गये, परन्तु मेरी आँखों के सम्मुख अभी तक वहीं रम्य मूर्ति उसी सुंदरता के साथ घूम रही है। यही ऋतु थी, यही समय था, यही स्थान था, यही वृक्ष था, सूर्य अस्त हो रहा था, मन्द-मन्द वायु चल रहा था। प्रकृति पर अनूठा यौवन छाया हुआ था। इस नाटक में सुखदा और महारानी के वार्तालाप में भी काफी प्रभावोत्पादकता झलकती है। दोनों अपने निर्णय में अड़िग दीखती हैंमहारानी-लेकिन तुम्हारा मनोरथ सफल नहीं हो सकता। सुखदा- तो आजीवन अविवाहित रहूँगी। महारानी-उसमें समाज-निन्दा का डर है। सुखदा- मर जाऊँगी। महारानी-लोग हंसेंगे। 1. डा० नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ॰ 114.