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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 327 प्रति घृणा एवं निर्दोष पशुओं के प्रति ममता, करुणा जगती है। वे उसी समय हिंसा के स्थान पर अहिंसा का महत्व प्रतिपादन करते हुए सभी को मुक्त करवाते हैं, और संसार के सम्बंधों की निरर्थकता, कृष्ण के हृदय का कपट अनुभव कर ग्लानि पैदा होने से स्वयं गिरनार पर जाकर कठिन तपस्या करते हैं। अनन्तर 'केवल ज्ञान' प्राप्त कर जगत में जैन धर्म की अहिंसा, करुणा, समानता का संदेश फैलाते हैं। उनके पीछे राजकुमारी राजमती भी गिरनार पर तपस्या के लिए जाती है। प्रारंभ में वह नेमिकुमार को डाँटती है, उलाहना देती है, लेकिन नेमिनाथ के उपदेश से आत्म-कल्याण एवं मानव-कल्याण के पथ पर अग्रसर होने के लिए सन्यस्त ग्रहण करती है। भगवान अरिष्टनेमि की महानता या विशेषता उस बात में है कि जैनियों तो उन्हें तीर्थंकर के रूप में स्वीकारते हैं, प्रत्युत वैदिक मतानुयायियों में भी वे आदर की दृष्टि से देखे जाते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद और महाभारत में भी उनका उल्लेख स्पष्ट किया गया है। (2) सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य :
__चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में यह बात बिल्कुल नवीन होने पर भी ऐतिहासिक दृष्टि से सत्य भी है कि वे जैन मुनि हो गये थे। जैन धर्म सम्बंधी उनका ज्ञान गहरा था। चन्द्रगुप्त ही उत्तरावस्था में उसके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था, तब जैन धर्म की रक्षा हेतु बड़े-बड़े आचार्यों को दक्षिण में भेजा गया था। आचार्य भद्रबाहु के ज्ञान और तप से चन्द्रगुप्त बहुत प्रभावित थे, आचार्य को वे अपना गुरु मानते थे। उनके साथ हैलव ने भी आत्म कल्याण के लिए 'परम पद' का विहारी बन जाना उचित समझकर दीक्षा अंगीकार की थी। युवराज बिन्दुसार को राजगद्दी सौंपकर चन्द्रगुप्त निकल पड़े थे। राजर्षि चन्द्रगुप्त और श्रुत केवली भद्रबाहु का समाधिकरण श्रवण बेलगोला के कटवप्र पर्वत पर हुआ था। इन्हीं की पवित्र स्मृति में यहाँ पर सम्राट बिन्दुसार और युवराज अशोकबर्द्धन ने कई भव्य जिन मंदिरों और निषधिकाओं का निर्माण करवाया। चन्द्रगुप्त की समाधि मृत्यु की याद में उसको 'चन्द्रगिरि' नाम दिया गया और आज भी शिलालेख में अंकित इस बात से यह स्पष्ट होता है कि मुकुट बद्ध सम्राटों में सम्राट चन्द्रगुप्त ही ऐसे थे, जिन्होंने दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण कर जैन धर्म के महात्म्य को स्वीकार किया था। (3) सम्राट 'ऐल' खारवेल : ____'ऐल' सम्राट का विरुद्ध सूचक शब्द है। ऐल खारवेल जैन धर्मी थे। कलिंग के इस राजकुमार की शादी सिंहपथ (कलिंग की एक नगरी) की जैन धर्मी राजकुमारी से हुई थी। खारवेल ने कुमारी पर्वत पर जिन मंदिर बनवाकर