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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
युद्ध क्षेत्र में पहुँचकर अंजना के प्रेम से प्रफुल्लित और प्रेरित पवनंजय हिंसामय युद्ध रोकने की चेष्टा स्वरूप रावण को समझाया लेकिन अभिमानी रावण मानता नहीं है। इससे निरपराधी वरुण की सहायता कर रावण को परास्त करता है। इस प्रसंग में लेखक ने सुन्दर नवीन उद्भावना की है।
उधर पवनंजय की अनुपस्थिति में अंजना को गर्भवती जानकर उसे कुलटा, कलंकिनी समझकर पवनंजय की माता रानी केतुमती उसे नगर से बाहर निकालकर महेन्द्रपुर की सीमा तक छोड़ आने का हुकुम सारथी को देती है। ससुराल से निकाल दिए जाने पर स्नेहमयी सखी वसन्तमाला ने महेन्द्रपुर जाकर अंजना के लिए आश्रय की प्रार्थना की लेकिन वहाँ भी अंजना के कलंक की बात पहुँच जाने से राजा महेन्द्र आश्रय देने से इनकार करता है। दुःखी विवश, गर्भ भार से शिथिल अंजना वसन्तमाला के साथ वन में प्रस्थान करती हैं। यहीं एक गुफा में अंजना एक तेजस्वी बालक को जन्म देती है। यही तो है पवनंजय को अहंकार की कैद से मुक्त करने वाला 'मुक्ति दूत'। एक दिन बीहड़ जंगल के राजा प्रतिसूर्य-जो अंजना के मामा थे-विमान बिगड़ जाने से नीचे उतर आए और उसी गुफा में गए, जहाँ ये दोनों सखियाँ नन्हें शिशु को संभाल रही थीं। परिचय प्राप्त होने पर राजा प्रतिसूर्य उन सबको अपने घर ले गया। रास्ते में विमान में से बालक गिर गया, लेकिन बालक को कुछ न हुआ और शिलाखण्ड चूर-चूर हो गया। विमान को नीचे उतार कर बच्चे को उठा लिया और हनूरूह नगरी पहुँचकर बालक का नाम हनूमन् रखा गया।
विजयी होकर पवनंजय जब आदित्यपुर पहुँचता है तो अंजना के विषय में जानकर अत्यन्त दुखी होकर क्रोध और वेदना की स्थिति में उसे खोजने के लिए निकल पड़ता है। प्रथम अपनी ससुराल महेन्द्रपुर जाता है, लेकिन वहाँ से निराशा प्राप्त हुई तो जंगल की ओर निकल पड़ा। अंजना ने भी पवनंजय के समाचार सुने तो वह चिंतित हुई। प्रतिसूर्य अपने बहनोई राजा महेन्द्र के पास अंजना का समाचार ले जाता है और वहाँ राजा प्रह्लाद को भी देखता है। सभी पवनंजय की खोज के लिए निकल पड़ते हैं। अन्त में सभी पवनंजय को खोजने में सफल होते हैं, अंजना पवनंजय का सुखद मिलन होता है। अंजना की साधना तपस्या फली और पवनंजय को नन्हा-सा बालक मिला 'मुक्ति दूत'-सा।
यही ‘मुक्तिदूत' का संक्षिप्त कथानक है, जिसको कुशल लेखक ने रोमांचक घटनाओं, प्रकृति के मृदु-भयानक वर्णनों, मानसिक भावों की क्रिया-प्रतिक्रियाओं और विशद् चरित्रांकन के द्वारा अत्यन्त जिज्ञासावर्द्धक और आकर्षक बनाया है। लेखक ने विशेष मनोवैज्ञानिक व जीवंत हो सका है।