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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
मूल्यवान वस्तु आत्मबोध मिल चुका है। उसे पा लेने पर किसी की इच्छा नहीं रहती। ___'परख' कहानी में एक गुरु के दो शिष्य भूतबलि एवं पुष्पदन्त की कसौटी की कथा है। क्योंकि ज्ञान का भण्डार गुरु किसी सुयोग्य शिष्य को सौंपना चाहते थे। दोनों शिष्य उनकी कसौटी से पार उतरे और गुरु ने भी संतोष व प्रेम से उस भण्डार को सौंप दिया। अनन्तर शास्त्र उद्धारक, शास्त्र रचयिता और ज्ञान-प्रवर्तक का श्रेय इन दोनों शिष्यों के हिस्से में आया।
'प्रतिज्ञापालन' में दृढ़ता एवं निष्ठापूर्वक किये गये कार्य से प्राप्त फलसिद्धि का सुन्दर वर्णन है, फिर कार्य चाहे छोटा हो या बड़ा।
'नीति की राह पर' में कथाकार ने प्रतिज्ञापालन करने से भी मन से उठे हुए विचारमात्र को प्रतिज्ञा की भांति पालन करने वाले वीर-प्रतिज्ञ की महानता अंकित की है। कुबेर कान्त नामक अति समृद्ध नवयुवक की मनोदशा का लेखक ने अच्छा निरूपण किया है। संपन्न पिता के द्वारा एक हजार आठ कन्याओं के पाणिग्रहण के विधान एवं धूमधाम के अयोजन का विरोध करने की हिम्मत एक-पत्नी-व्रत का निर्धारण कर चुके कुबेरकान्त में नहीं है। यहाँ उसकी उलझन भरी मानसिक दशा का मार्मिक चित्रण किया गया है। अन्त में उसके व्रत की अडिग निष्ठा के कारण उसके पिता को झुकना पड़ता है और प्रियदत्ता नामक सुकन्या से विवाह संपन्न होता है।
'जल्लाद' की कथा प्रतिज्ञा-पालन का महत्व अभिव्यक्त करती है। जल्लाद के एक छोटे-से व्रत ने उसे अहिंसक और सम्मानीय बना दिया तथा राजा के लिए भी आदर्श स्थापित कर दिया। चतुर्दशी के दिन किसी की हत्या न करने का व्रत साधु से लेने पर प्राणान्त दण्ड की सजा पाने पर भी व्रत निभाने के लिए जल्लाद की दृढ़ता देख राजा उसे मुक्त करता है और धन देकर सम्मान करता है।
'चरवाहा' में करनी का फल अंकित किया गया है। कर्मानुसार फल पाने का अधिकारी प्रत्येक व्यक्ति होता है। गरीब लेकिन ईमानदार अकृत द्रव्य और उसकी मां मजदूरी करते हुए भी एक दिन परम उपकारी दिगम्बर साधु को आहारदान देकर पुण्य के भागी बनते हैं। (5) मिलन :
'मिलन' प्रेरणात्मक पौराणिक कहानी संग्रह का प्रकाशन अभी सन् 1975 में उनके अनुज वसन्त जैन ने करवाया, क्योंकि भगवत जी का देह विलय 1944 ई. में हुआ था। सहज रूप से बोध प्राप्ति एवं आनंद-रस-प्राप्ति