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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रतिपादित करती हुई कहानी 'लुटेरा' में बताया गया है कि अच्छे व्रत की शिक्षा का पालन मनुष्य को महान बना देती है। रात्रि-भोजन त्याग के कारण ही धनदत्त लुटेरा जहरीले लड्डू खाने से बच जाता है एवं ढेर सारी संपत्ति का अकेला मालिक बन जाता है। लेकिन इसी माया के कारण घिनोने काम किये गये हैं, ऐसा सोचकर संपत्ति के प्रति तिरस्कार व वैराग्य पैदा होता है और धन के मोह को त्याग साधु बन जाता है। क्योंकि एक छोटे-से व्रत पालने के कारण उसके विचारों में आमूल परिवर्तन आ गया था। छोटे-से व्रत पालने से यदि अपार संपत्ति मिल सकती है तो व्रतों के पालने से ली हुई साधु जिन्दगी से आत्म कल्याण प्राप्त होना ही है! धन की निदर्यता ने लुटेरे की आंतरिक दशा को झकझोर साधु मार्ग की ओर प्रेरित किया।
'प्रतिशोध' में निर्दयी मनुष्य अपने से निर्बल या अधीनस्थ मनुष्य पर जुल्म ढाता है, लेकिन बाद में करनी के फल से सजा भोगते समय वह दया का भिखारी बन जाता है, इस तथ्य का उद्घाटन किया गया है। महाराजा सुघोष ने पाकशाला के अधिकारी जयदेव को छोटी-सी गलती के कारण निदर्यता से मरवा डाला और फिर दूसरे जन्म में वह जयदेव के दूसरे जन्म के रूप से वह जिह्वालम्पट मारा गया।
'खून की प्यास' कहानी की कथावस्तु में महाराज अरविंद मौत की शय्या पर लेटे-लेटे 'पहला सुख निरोगी काया' का महत्व अनुभव कर रहे थे। अहिंसा के महान सिद्धान्त का परोक्ष प्रतिपादन इसमें किया गया है। महाराज अरविंद अपने असह्य दाह ज्वर को शांत करने के लिए रक्त से वापिका भरने की आज्ञा अपने शान्त, अहिंसक पुत्र कुरुचिन्द को करता है। पिता की आज्ञा का पालने करने के लिए वह डरते हुए मन से हिरनों का शिकार करने के लिए जंगल में जाता तो है, लेकिन उसकी अन्तरात्मा में ज्ञान होता है और वह अहिंसा की पुनीत दृढ़ता के साथ वापस लौटता है। लाख के लाल रंग का पानी वापिका में भरवाकर पिता को निमग्न करवा दिया जाता है। थोड़े समय के लिए महाराज को रोग-शांति का भ्रम होता है, लेकिन चुल्लू भर चखने से वास्तविकता का पता चलने पर क्रोध से पागल होकर पुत्र को मारने के लिए जब छूरी को लेकर आगे बढ़ता है, तब फिसलकर औंधे मुंह गिर जाने से अपने ही पेट में वही छूरी घुस जाने से खून का फव्वारा छूटता है। उसकी खून की प्यास बुझी कि नहीं, पता नहीं। 6. मानवी :
ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित इस संग्रह की कहानियाँ नारी जीवन में