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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रभव की मानसिक स्थिति का लेखक वर्णन करते हुए लिखते हैं-प्रभव का मन न जाने कैसा हो उठा था? जिस मित्र के लिए कई रातें वह आराम से सो न सका, जिससे मिलने के लिए वह रात-दिन बेचैन रहा, आज उसके
आ मिलने पर जैसे एक बोझ सा, दबाव सा पड़ रहा है। सहसा हो जाने वाली फिक्र जो चैन के रास्ते की ठोकर बन गई है।'
अंतिम कहानी 'शान्ति की खोज' में वैभव को सच्चा सुख मानने से कितना पतन होता है और क्षण-क्षण विनाश की ओर ले जाने वाले वैभव, विलास एवं रूप-कामना की प्यास में सुख-शान्ति को खोजना कितना व्यर्थ है-कितनी बड़ी भारी भूल है, इस तथ्य का सुन्दर रोचक शैली में निरूपण किया गया है।
अति स्वरूपवान चौथे चक्रवर्ती राजा सनतकुमार अपने रूप पर स्वयं रीझ गये, अहंकार एवं अभिमान से भरने के कारण इनके देह में वह अपूर्व दीप्ति न रही और सौंदर्य की ऐसी अनिश्चितता देखकर सनतकुमार की आंखें खुल गईं और बाहरी सौंदर्य से आत्मिक सौंदर्य सनातन सत्य को खोजने के लिए पल-पल मृत्यु की ओर जाने वाली जिन्दगी को सार्थक करने के लिए जंगल में चले गये। राज मुकुट युवराज देवकुमार के मस्तक पर आभूषित किया गया। (4) पारस-पत्थर :
___ इसमें बहुत-सी कहानियों का संग्रह किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं पारस-पत्थर, अभागा, कलाकार, आत्मबोध, परख, प्रतिज्ञापालन, जल्लाद एवं दरवाजा। पुरातन कथा वस्तुओं को आधुनिक विचारधारा एवं नूतन भाषा-शैली से सुसज्जकर प्रस्तुत किया है। उन्हीं के शब्दों में आज का युग जैसी भाषा-शैली में पढ़ना चाहता है, मैंने कहानियों को वैसे ही रूप में पाठकों को देने की कोशिश की है। यह कहना अहमन्यता होगी कि अब वे निखरे रूप के कारण संजीवन पा गई है। मेरा इतना ही उनके साथ सम्बन्ध है, जितना कि रूपवान व्यक्ति के शरीर से कीमती लुभावना और सामायिक वस्त्रों का।"
पारस-पत्थर के प्रारंभ में प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र जैन ने लिखा है-"भाई भगवतस्वरूप जी जैन वाङ्मय से वैसी चीजें चुनकर दोबारा जैन समाज को ही देने के प्रयत्न में लगे हैं, यह सराहनीय है।"
'पारस-पत्थर' इसी शीर्षक की कहानी में अनाथ गरीब गौतम मुनिराज की अपरिग्रह वृत्ति एवं संयम से काफी प्रभावित होता है और पारस जैसे 1. भगवत जैन : 'विश्वासघात' में अन्तर्द्वन्द्व-कहानी, पृ० 85. 2. भगवत जैन : पारस पत्थर, पृ० 2 (प्रस्तावना दो शब्द)।