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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
चढ़ाकर दुर्गद्वार स्थिर रखने की योजना छोड़कर दुर्ग के द्वार को खंडित दशा में रखना जैन धर्मी राजा सुमित्र बेहतरीन समझते थे। क्योंकि निरपराध मानव की बलि चढ़ाकर राजा कलंकित नहीं होना चाहता था। अहिंसा की अजेय शक्ति या राजा की दृढ़ता के कारण दूसरे दिन दुर्गद्वार को कुछ न हुआ, और वह स्थिर खड़ा रहा।
'शैशव' में हिंसा का क्रूर परिणाम दिखाया गया है। बालक सौमक निर्दोषता से सच्चाई प्रकट कर अपने मित्र की हत्या का पर्दाफाश करता है। अपने बाल साथी समुद्रदत्त की हत्या गहनों के लोभ से उसके पिता ने ही की थी, इस रहस्य के उद्घाटन पर सौमक के पिता गोपालन को मृत्यु दण्ड मिलता है। मनुष्य को अपने हिंसक कर्म का फल मिल ही जाता है।
'मातृत्व' चरित्र-चित्रण की दृष्टि से इस संग्रह की अच्छी कहानी है। मरुभूति की चारित्रिक विशेषता मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यक्त की गई है। भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व जन्म की वह कथा है, जिसमें उन्हें कितने जन्मों तक अपने बड़े भाई कमठ के द्वारा किए गए अनेकानेक कष्टों, परिषहों को सहना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी सज्जनता व शान्ति न छोड़ी, कभी क्रोध या तिरस्कार न कर शान्त चित्त से क्षमार्थ भावपूर्वक सब सहते रहे और अन्त में तीर्थंकर पद के अधिकारी हुए।
'अपराधी' में नारकीय संपत्ति और उसके फलस्वरूप विपत्ति की स्थिति का वर्णन किया गया है। 'जल्लाद' एवं 'नर्तकी' साधारणत: अच्छी कहानियाँ हैं। अन्य कथा-संग्रह 'पारस और पत्थर' में इसे संग्रहीत किया गया है। (3) विश्वासघात :
इसमें आठ पौराणिक कथाएँ संग्रहीत की गई हैं-विश्वासघात, पाप का प्रायश्चित, रात की बात, क्षमा के पथ पर, करनी का फल, आत्म शोध, अन्तर्द्वन्द्व और शान्ति की खोज में।
प्रथम कहानी 'विश्वासघात' में मित्र द्वारा किए गए विश्वासघात के कारण राजा वीरसेन के वैराग्य एवं राजा मधु का वीरसेन की स्वरूपवान पत्नी चन्द्रमा पर आसक्त होकर जबर्दस्ती अपने अंत:पुर में रखने की कथा है। चन्द्रमा सौंदर्यवती के साथ बुद्धिशाली एवं व्यवहारिक भी थी, अतः सहायक-मित्र बड़े राजा मधु की आरती उतारने की पति की आज्ञा का विरोध करती है। लेकिन वीरसेन नहीं मानता है और रानी को जो डर था वही हुआ। राजा मधु को अन्त में परस्त्री के साथ इस प्रकार के कुकर्म से पछतावा होता है और