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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
शैली में रचनाएँ की गई है। फिर भी बहुत से ग्रंथ अभी भी कथा-साहित्य के लिए बाकी पड़े हैं। कथा-चरित्रों का अनुवाद भी किया गया है। इन कथा साहित्य में भिन्न-भिन्न कथावस्तु वाली कहानियाँ लिखी गई हैं। उनमें कला के तत्त्वों का भी अच्छा प्रमाण देखा जाता है इनमें रोचकता के साथ-साथ पात्र, प्रसंग व वातावरण का भी काफी ध्यान रखा गया है।
कथा-साहित्य का महत्त्व प्राचीनकाल में अक्षुण्ण रहा है, क्योंकि संपूर्ण मानव जाति इसमें अपने भावों व चरित्रों का विश्लेषण या तादात्म्य स्थापित कर आसानी से रस प्राप्ति कर सकता है। जैन साहित्य में जीवन के आदर्श को व्यक्त करने वाली दो हजार वर्ष प्राचीन कथाओं का विपुल भण्डार भरा है, जिनका हिन्दी जैन साहित्य में काफी उपयोग किया गया है इन कथाओं से मानव को आनन्द के साथ-साथ जीवन--विकास की प्ररेणा और आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त होता है, साथ ही अधनीति, राजनीति, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों का मार्गदर्शन भी मिलता है, जिनका वर्णन जैन कथा साहित्य में गहराई से किया गया है। “हिन्दी कथाओं की शैली बड़ी ही प्रांजल सुबोध और मुहावरेदार है, ललित लोकोक्तियाँ, दिव्य-दृष्टान्त और सरस मुहावरों का प्रयोग किसी भी पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए पर्याप्त है। जैन कथा-साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह रहती है कि इसमें प्रथम रोचक कथा वस्तु रहती है, बाद में धार्मिक या नैतिक ज्ञान, जिससे पाठक को प्रथम रसास्वादन मिलने के पश्चात ज्ञान प्रप्ति होती है। इनमें समाज-विकास व लोक-कल्याण की प्रवृत्ति की गहरी छाप भी रहती है। वस्तुतः जैन कथाएँ नीति बोधक मर्मस्पर्शी और आज के युग के लिए नितांत उपयोगी है इनमें व्यापक लोकानुरंजन और लोक मंगल की क्षमता है। कर्म के सिद्धान्त की अटूट आस्था व्यक्त करने वाली कहानियाँ जैन साहित्य में जितनी उपलब्ध होती है, उतनी अन्यत्र नहीं। डॉ. सत्यकेतु का मानना है कि-'जैन साहित्य में बौद्धों से भी अधिक कहानियों का भण्डार मिलता है। प्रसिद्ध योरोपीय विद्वान सी० एच० होन ने कहा है कि-जैनों के कथा कोष में संग्रहीत कथाएँ और योरोपीय कथाओं में निकट साम्य है। श्री हान, हर्टल ने कोबी, ल्यूमेन, आदि यूरोपीय विद्वानों ने जैन कथा-साहित्य के क्षेत्र मे महत्त्वपूर्ण कार्य किया। जैन कथा-साहित्य में धर्म को प्रधानता दी गई है। महापुरुषों की कथा के द्वारा जनता में-नैतिक गुणों का विकास नजर में रखा जाता था। धर्म के सुफल को बताना इस कथाओं 1. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 77. 2. वही, पृ. 54.