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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
'हे! ऐसे अभद्र शब्द, खबरदार, फिर मुँह से न निकालना। तेरे जैसे नीच मनुष्यों को तो मेरा दर्शन भी न होगा।' इसमें देवदत्त की कामुकता, लम्पटता व निर्लज्जता का परिचय मिलता है, तो दूसरी ओर कुपथ से सच्चे पथ पर अडिग दृढ़ निश्चयवाली रूपसुन्दरी की दृढ़ता एवं देवदत्त के प्रति नफरत की भावना अभिव्यक्त होती है।
पं. मूलचन्द 'बत्सल' का नाम भी पौराणिक कथावस्तु लेकर कथा साहित्य लिखने वालों में महत्त्वपूर्ण स्थान पाता है। पुराने जैन कथानकों को नवीन ढंग से प्रस्तुत किया है। यद्यपि शैली को यथाशक्ति परिमार्जित बनाए रखने की कोशिश की है, फिर भी प्राचीन कथा वस्तु के वर्णन, चरित्र, कथोपथन आदि में आधुनिक टेकनीक का निर्वाह नहीं हो पाया है। सती रत्न :
___ 'सती रत्न' में 'वत्सल' जी ने तीन कथाओं को रोचक ढंग से रखा है। कुमारी ब्राह्मी और सुन्दरी प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की दोनों पुत्रियाँ थीं, जिन्होंने अविवाहित रहकर त्याग व तपस्यामय जीवन व्यतीत किया था। 'चन्दनाकुमारी' और ब्रह्मचारिणी अनन्तमति' में भी दोनों राजकुमारी होने पर भी संसार का त्याग कर भागवती दीक्षा अंगीकार करने वाली ये दोनों सतियों की कथावस्तु है। इन कथाओं में अनेक स्थानों पर उपदेशक के रूप प्रस्तुत होने से कथा के प्रवाह में अंतराय के साथ बहुत नीरसता पैदा होती है। कथाओं में मूल तत्त्वों को संनिवेश करने की कोशिश में लेखक को साधारण सफलता मिली है।
पौराणिक कथा वस्तु लेकर आधुनिक शैली में मौलिक कथा-साहित्य लिखने वालों में हम जैनेन्द्र जी का नाम सम्मानपूर्वक ले सकते हैं। न केवल
जैन-साहित्य उनसे गौरवान्वित है, बल्कि हिन्दी कथा-साहित्य में भी उनका योगदान महत्त्वपूर्ण होने से हिन्दी साहित्य के इतिहास में उनका स्थान काफी महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि जैनेन्द्र जी ने एक नए आयाम का प्रारंभ नूतन शैली व वस्तु के द्वारा किया है। हिन्दी साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित कलाकार होने पर भी सार्वजनिक सैकड़ों कथाएँ आपने लिखी हैं। उनकी रचनाओं में साहित्यिक गुणों के साथ दार्शनिक गांभीर्य भी मौजूद है। भावुकता और आदर्शवाद के साथ आध्यात्मिकता का प्रेरक बल छिपा रहता है। फिर भले ही वह जैन रचनाएँ न होकर सामान्य जगत एवं जीवन से सम्बंधित हिन्दी साहित्य की रचना हो। भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति वे स्पष्ट, सुरेख चित्रों के द्वारा आसानी से कर सकते
1. साहित्य रत्नालय-बिजनौर।