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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 297 मिथ्याभिमानी वसुराजा, देवरतिराजा, गोपवती, बीरवती, सात्यकि और रुद्र की कथा, मरीचिकुमार, भीमराज, पुष्पदत्ता आदि कथाएँ हैं। जबकि लौकिक कथाएँ नहींवत् हैं, जैसे कि लौकिक ब्रह्मा की कथा, नीली की, बतीस सेठ पुत्रों की, अढारपिंग की कथा आदि। पुरातन कथावस्तु लेकर रोचकता व आनंदवृद्धि के साथ आध्यात्मिक युग का मानव प्रत्यक्ष उपदेश को ग्रहण करने की अपेक्षा करता है। कथाओं से धार्मिक तत्त्वों के ज्ञान के साथ-साथ तत्कालीन परिस्थितियों के विषय में जानकारी पाठक पा सकता है। लेखक ने इस आराधना-कथा-कोश को लिखने का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखा है-'अन्य मतों की कल्पनाओं का सत्पुरुषों को ज्ञान हो, उद्देश्य थोड़ा बहुत संकुचित दिखाई पड़ता हो, फिर भी इस कोश की बहुत-सी कथाओं का सुन्दर भावानुवाद किया है।
पुरातन कथानकों को लेकर श्री बाबू कृष्णलाल वर्मा ने स्वतंत्र रूप से सुन्दर कथाएँ लिखी हैं। इनकी कथाओं में कहानी कला तो विद्यमान है, साथ ही वस्तु, पात्र और दृश्य तीनों अंगों का ध्यान रखा गया है। भाषा शैली भी आधुनिक व प्रभावशाली है। कथाओं में मनोरंजकता, सहजता व हृदयस्पर्शिता का समायोजन किया गया है। कथाओं में महासती सीता, खनकक कुमार, सुरसंदरी एवं सती दमयन्ति उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं, जिनकी विषय वस्तु की संक्षिप्त विवेचना की जायेगी। (1) खनक कुमार :
__ इसमें मानवीय स्वभाव के द्वन्द्वों का लेखक ने सुन्दर मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रण किया है। आज के भौतिकवादी जनमानस के लिए ऐसी कथाएँ अत्यन्त उपादेय हैं। अभिमान, अत्याचार के विरुद्ध सहनशीलता और त्याग के संघर्ष को इसमें अभिव्यक्त किया गया है। कथानक:
सेवंती नगरी के राजा कनक केतु और रानी मनसन्दरी का पुत्र खनककुमार बचपन से ही भावुक, सदाचारी और धर्माभिमुख था। बाल्यकाल में ही माता-पिता के साथ धर्म-पूजा के शामिल होता था। युवा होने पर संसार के विषय भोगों एवं भौतिक वैभव-विलास से विरक्ति आ गई। माता-पिता के स्नेह के कारण वे अब तक संसार में रहे। लेकिन एक दिन वे सब कुछ छोड़कर दिगम्बर मुनि हो गए। मुनि अवस्था में विचरण करते हुए वे अपनी बहन देवबाला की सुसराल की नगरी में पहुँचते हैं। रानी देवबाला अपने पति के साथ 1. प्रकाशक-आत्मानंद जैन ट्रेक्ट सोसायटी, अंबाला, शहर।